हरियाणा की पवित्र भूमि कुरुक्षेत्र, जहाँ श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था, केवल धर्म और युद्धभूमि का प्रतीक नहीं है, बल्कि यहाँ माँ शक्ति का भी एक अत्यंत पावन स्थान है – माँ भद्रकाली शक्तिपीठ।
कहा जाता है कि यहाँ देवी सती के दाहिने टखने (Right Ankle) का पतन हुआ था। यह वही स्थान है जहाँ देवी ने अपने भक्तों को विजय, शक्ति और शांति का वरदान दिया। आज यह शक्तिपीठ माँ भद्रकाली मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है और लाखों श्रद्धालु यहाँ हर वर्ष दर्शन के लिए आते हैं।
माँ भद्रकाली शक्तिपीठ का उल्लेख देवी भागवत पुराण, कालिकापुराण और तंत्रचूड़ामणि जैसे ग्रंथों में मिलता है।
जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती का शव लेकर ब्रह्मांड में तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंगों को ५१ भागों में विभाजित किया।
जिन स्थानों पर वे अंग गिरे, वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
कुरुक्षेत्र का यह स्थल उन ५१ शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ सती का टखना गिरा था।
यहाँ देवी भद्रकाली के रूप में विराजमान हैं, और भगवान शिव रुधिर भैरव के रूप में पूजे जाते हैं।
कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले माँ भद्रकाली की पूजा की थी ताकि उन्हें विजय प्राप्त हो।
युद्ध के बाद उन्होंने यहाँ अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस कारण यह स्थान “विजय प्राप्ति का शक्तिपीठ” कहलाता है।
माँ भद्रकाली मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत और दिव्य है। मंदिर के गर्भगृह में माँ की काली पाषाण की मूर्ति स्थापित है, जिनके चार हाथ हैं — और प्रत्येक हाथ में शक्ति का प्रतीक अस्त्र-शस्त्र धारण किया गया है।
✔️ यहाँ कुछ विशेष पूजा और परंपराएँ अत्यंत प्रसिद्ध हैं:
✔️ कन्यापूजन: नवमी के दिन यहाँ नौ कन्याओं को भोजन कराना और पूजा करना बहुत फलदायी माना जाता है।
✔️ भद्रकाली अष्टमी: यह मंदिर का मुख्य उत्सव है। इस दिन यहाँ विशेष आरती और अखंड दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
✔️ महाशिवरात्रि और नवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है।
यह भी कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति को शनि दोष निवारण की आवश्यकता हो या मंगल दोष क्या है और उपाय जानने की इच्छा हो, तो माँ भद्रकाली की आराधना से उसका जीवन संतुलित हो सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि जब किसी की कुंडली में शनि, मंगल या राहु की स्थिति प्रतिकूल होती है, तो उसका जीवन संघर्षमय हो जाता है।
ऐसे समय में माँ भद्रकाली की पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शक्ति, साहस और निर्णय लेने की क्षमता मिलती है।
जो लोग प्रेम विवाह कुंडली में अड़चनों का सामना कर रहे हैं, उनके लिए भी भद्रकाली माँ का आशीर्वाद शुभ फल देता है।
माँ की कृपा से मंगल दोष शांत होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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स्थान: थानेसर, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
कैसे पहुँचे:
रेल मार्ग: कुरुक्षेत्र जंक्शन दिल्ली, अंबाला और चंडीगढ़ से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ (90 किमी) है।
सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग NH-44 के माध्यम से यह मंदिर आसानी से पहुँचा जा सकता है।
क्या देखें:
माँ भद्रकाली मंदिर का मुख्य गर्भगृह
मंदिर परिसर में स्थित रुधिर भैरव मंदिर
पास में स्थित ब्रह्मसरोवर, जहाँ स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
गीता भवन, जहाँ श्रीकृष्ण के उपदेश अंकित हैं।
ट्रैवल टिप्स:
नवरात्रि या अष्टमी के दौरान मंदिर में भारी भीड़ होती है, इसलिए सुबह जल्दी पहुँचना बेहतर है।
प्रसाद के रूप में यहाँ लाल चुनरी और मीठे चूरमे का प्रसाद प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर स्वच्छ और शांत है — इसलिए जूते बाहर उतारकर ही प्रवेश करें।
आज के समय में जहाँ चिंता, क्रोध और अस्थिरता बढ़ रही है, वहाँ माँ भद्रकाली की भक्ति जीवन में आत्मिक संतुलन और मानसिक शांति लाती है।
माँ की उपासना से व्यक्ति अपने जीवन के संघर्षों से ऊपर उठकर आत्मविश्वास और निडरता का अनुभव करता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से, जो लोग बार-बार असफलता का सामना करते हैं या जिनके कार्य पूर्ण होने से पहले रुक जाते हैं, उनके लिए भद्रकाली की पूजा विशेष लाभदायी होती है।
यहाँ आकर आप न केवल भक्ति का अनुभव करते हैं, बल्कि यह भी समझते हैं कि देवी शक्ति के बिना जीवन अधूरा है।
माँ भद्रकाली शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भक्ति, शक्ति और शांति का संगम है।
यहाँ आने वाला हर भक्त जीवन में सकारात्मकता का अनुभव करता है।
कहा जाता है — “जो भद्रकाली का स्मरण करता है, वह हर भय, दोष और बाधा से मुक्त होता है।”
इसलिए जब भी आप आने वाला चंद्र ग्रहण कब है जैसी खगोलीय घटनाओं के प्रभाव से चिंतित हों, तो माँ भद्रकाली का ध्यान अवश्य करें — क्योंकि देवी की कृपा से हर अंधकार मिटता है।
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