इसमें हम जानेंगे कि वक्री ग्रह किसे कहते हैं ?वक्री ग्रह का क्या प्रभाव होता है ? व इसके अलावा वक्री ग्रह से जुड़ी हुई कई तरह की भ्रांतियों पर भी बात करेंगे ।
वक्री शब्द का सामान्य अर्थ होता है - घुमावदार । अब यदि कोई व्यक्ति बहुत घुमावदार बातें करता हो व इसके माध्यम से छल प्रपंच करने का प्रयास करता हो तो ऐसे व्यक्ति को वक्री कहा जाता है । ठीक इसी तरह ग्रहों की स्थिति होती है , जब कोई ग्रह अपनी सामान्य दिशा से विपरीत दिशा में चलने लगता है तो ऐसे ग्रह को वक्री ग्रह कहा जाता है । हालांकि ये व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है कि किसी परिधि विशेष में गतिमान ग्रह अचानक से अपनी विपरीत दिशा में चलने लगे ,अगर ऐसा होता है तो सम्पूर्ण सृष्टि में बड़ी विपदा आ सकती है । किन्तु यहाँ पर ग्रह विशेष के विपरीत दिशा में चलने का अर्थ उसकी गति कम हो जाने से है । किसी ग्रह के वक्री हो जाने का अर्थ उसकी गति कम हो जाने से होता है अर्थात जब कोई ग्रह अपनी गति कम हो जाने के कारण पीछे की ओर खिसकता हुआ दिखने लगे तो उस अवस्था को उस ग्रह की वक्री अवस्था कहा जाता है।
वक्री ग्रहों के विषय में ये जानना बहुत आवश्यक है कि दो ग्रह ऐसे भी हैं जो कभी वक्री नहीं होते हैं । उन दो ग्रहों में एक तो है सूर्य और दूसरा ग्रह है चंद्रमा । यानि सूर्य और चंद्रमा दो ऐसे ग्रह होते हैं जो कभी भी वक्री नहीं होते हैं । ऐसा इसलिए होता है क्यों कि इनकी गति सदैव पृथ्वी की गति से अधिक रहती है ।इसके अलावा राहु और केतु दोनों ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा वक्री ही रहते हैं ।
जब कोई ग्रह वक्री अवस्था में पहुँच जाता है तब उस स्थिति में उसकी सामान्य शक्ति पर प्रभाव पड़ता है । वक्री ग्रह की शक्ति को लेकर तमाम ज्योतिषविदों का अलग अलग मत है । कुछ ज्योतिषविदों का मानना है की वक्री की शक्ति कम हो जाती है तो वहीं कुछ ज्योतिषविद इसके ठीक विपरीत राय रखते हैं ,उनका मानना है कि वक्री ग्रह बेहद शक्तिशाली होते हैं । सर्वाधिक स्वीकार्य मत यही है कि वक्री ग्रह अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं ।
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वक्री ग्रह के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि अगर वक्री ग्रह नीच राशि में हो तो उच्च राशि के समान फल देने लगता है तो वहीं अगर वक्री ग्रह उच्च राशि में हो तो नीच के समान फल देने लगता है । वक्री ग्रह बहुत प्रभावी होता है और ये जिस ग्रह के साथ बैठता है उस ग्रह के प्रभाव में भी वृद्धि कर देता है । उदाहरण के लिए यदि कुंडली में मंगल ग्रह वक्री हो जाए तो ये जातक को प्रभावित करते हुए उसे अति उत्साही बना देंगे । ठीक इसी प्रकार अगर वाणी के स्वामी बुध कुंडली में वक्री हों तो ये जातक की वाणी को प्रभावित करते हुए उसे वाचाल यानि बहुत अधिक बोलने वाला बना सकते हैं । अगर शनि किसी कुंडली में वक्री होते हैं तो ये जिस भाव से संबंध रखते हैं उससे संबंधित समस्या उत्पन्न कर सकते हैं । किन्तु आप वृषभ लग्न के हैं तो घबराने की कोई बात नहीं है ,शनि आपको सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करेंगे ।
गुरु और शुक्र दोनों सर्वाधिक शुभ व उच्च ग्रह माने जाते हैं । उच्च लग्न के होने के कारण ये उस लग्न में ,जिसमें ये सर्वाधिक अकारक हों ,वहाँ वक्री होने पर ये जातक को कष्ट दे सकते हैं ।
इस प्रकार से हमने ग्रहों की वक्री अवस्था के विषय में विस्तार से समझा। आप अपनी जन्मकुंडली में देख सकते हैं कि कौन सा ग्रह वक्री है और वो किस तरह के फल देने वाला है ।
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