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स्वामी विवेकानन्द जी की जन्म कुंडली का विष्लेषण

Created by Asttrolok in Astrology 30 Aug 2023
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स्वामी विवेकानन्द जी की जन्म कुंडली का विष्लेषण

भारत का गौरव स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है । अपनी प्रखर बुद्धि, वाणी और आध्यात्मिक शक्ति के बल पर उन्होने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया था । आज भी वह भारतीय युवाओं के मार्गदर्शक है । उनके जन्म दिन के अवसर पर 12 जनवरी को देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है । आज हम इस लेख में स्वामी विवेकानंद जी का कुंडली का अध्यन करेंगे और जानेंगे कि ग्रहों की स्थिति का उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा था , वह कौनसी स्थितियां थी जिन्होंने उन्हें इतना महान शक्स बनाया ।

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विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1883 को भारत के कोल्कता राज्य में हुआ था ।लग्न कुंडली के अनुसार जब स्वामी जी का जन्म हुआ उस समय ग्रहों के राजा सूर्य लग्न भाव में धनु राशि में विराजमान थे बुध और शुक्र मकर राशि में द्वितीय भाव में स्थित थे । मंगल ग्रह पंचम भाव में अपनी स्वराशि मेष में स्थित थे । केतु शष्टम भाव में वृषभ राशि में थे । चंद्रमा और शनि दशम भाव में कन्या राशि में स्थित थे । गुरुदेव तुला राशि में एकादश भाव में स्थित विराजमान थे । राहु द्वादश भाव में स्थित थे । गुरु की राशि धनु का लग्न होने से इनमे कई आध्यात्मिक गुण बचपन से ही विराजमान थे ।

वर्गोत्तम कुंडली _विवेकानंद जी की कुंडली वर्गोत्तम है क्योंकी नवांश कुण्डली भी धनु लग्न की उदय है और लग्न में ही सूर्य है तो सूर्य भी वर्गोत्तम है । वर्गोत्तम सूर्य व्यक्ति को पवित्र आत्मा देता है इसके साथ ही ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास की अधिकता पाई जाती है । ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में घबराते नहीं है उन्हें किसी का भय नहीं होता है। स्वामी जी बचपन से ही निर्भिक थे ऐसे लोगो में देश प्रेम की भावना भी देखी जाती है जो स्वामी जी के अंदर भी थी शारिरिक रूप से भी ऐसे लोग हष्ट पुष्ट होते हैं ।

चंद्र और शनि की युति __ दशम भाव जिसे कर्म भाव भी कहा जाता है वे मजबूत शनि की स्थिति व्यक्ति को आध्यात्मिकता क्षेत्र में सफलता दिलाती हैं । जब शनिदेव के साथ चंद्रमा की युति होती है तो व्यक्ति अत्यधिक प्रतिभा देखी जाती है और चंद्रमा अष्टमेश होकर दशम भाव कर्म भाव में शनि के साथ है अष्टम भाव ध्यान का भी है वह कर्म भाव में बैठकर वह बहुत बड़े ध्यानी थे ध्यान में वह चर्म सीमा तक पहुंचे और चंद्र और शनि की युति ने उन्हें वैराग्य बनाया । वह आसानी से किसी की बात को मानते नही थे जब तक की उनको पूरी तरह से विषय या स्थिति का पता न लग जाए सुनी सुनाई बातो पर ऐसे लोग कभी भी यकीन नहीं करते है । स्वामी विवेका नंद के अंदर भी यह गुण कूट कूट कर भरा था उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी की बातो का भी शुरुवात में यकीन नही किया था । लेकिन जब उन्हें पूरी तरह से चीजे समझ में आ गई तो वह उनके शिष्य बन गए । ऐसे लोग जिस काम को अपने हाथ में लेते हैं उसे पूरा करके ही दिखाते हैं स्वामी जी ने भी अपने जीवन काल में ऐसा ही कियाकुंडली में गुरु और मंगल की स्थिति  स्वामी जी की कुंडली में गुरु एकादश भाव में स्थित है जबकि मंगल ग्रह उनके पंचम भाव में स्थित है । एकादश में गुरु की स्थिति से यह पता चलता है कि व्यक्ति में ज्ञान और आध्यात्मिकता क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होगी वही पंचम भाव में मंगल स्वराशि का है जिससे शिक्षा के क्षेत्र में यह व्यक्ति को सफलता दिलाता है इसके साथ व्यक्ति को खेलकुद में भी सफलता मिलती है ।

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स्वामी विवेकानंद जी भी बचपन में काफी प्रतिभा शाली थे वह आध्यात्मिक , धार्मिक ज्ञान के साथ साथ खेल कुद गतिविधियों में भी हिस्सा लेते थे । एकादश में गुरु होने से स्वामी विवेकानंद के अंदर कला के प्रति भी रुझान था क्योंकी गुरु शुक्र की राशि में विराजमान थे । इसलिए अच्छे गायक भी थे शुक्र को कला, सौंदर्य आदि का कारक माना जाता है ।
शुक्र और बुध की युति __ द्वितीय भाव को वाणी का भाव कहा जाता है । बुध संचार और वाणी का कारक ग्रह है द्वितीय भाव में शुक्र और बुध के विराजमान होने से शुभ योग का निर्माण हो रहा है इन दोनो ग्रहों के द्वितीय भाव में होने के कारण स्वामी जी में प्रखर वाणी और बातो में स्पष्टता थी और अपनी वाणी, तर्क और ज्ञान के कारण ही वह पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए और उन्होंने अपने देश का नाम भी पूरी दुनिया में रोशन किया ।

कुंडली में राहु - केतु  विवेका नंद जी की कुंडली में केतु छटे भाव में है जबकि राहु द्वादश भाव में है यह स्थिति भी अनुकूल है द्वादश भाव को अचेतन मन से जोड़कर देखा जाता है ।अचेतन मन पर पड़ी धुल जब दूर हो जाती है तो ऐसे में राहु और केतु अच्छे फल देते हैं स्वामी जी ने भी अपने गुरु की मदद से और योग का सहारा लेकर अपने अज्ञान को मिटा दिया ।
देश का गौरव है स्वामी जी कूल मिलाकर देखा जाए तो स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली में आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए बहुत अनुकूल थी । उनका लग्न धनु राशि का था जो कि गुरु की राशि है इसलिए उन्होंने अपने देश का नाम रोशन किया और भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाया । अपनी प्रखर वाणी से अमेरिका इंग्लैंड और भारत के कई प्रांतों में उन्होंने भाषण दिए और लोगो को प्रभावित किया आज भी उनके व्यक्तिव और उनके विचारों पर कई पुस्तके लिखी जा रही है ।

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