बांग्लादेश के बरिसाल ज़िले के शिकारपुर गाँव में स्थित सुगंधा शक्तिपीठ उन पवित्र स्थलों में से एक है, जहाँ देवी सती के शरीर का अंग गिरा था। यह स्थान आज भी तंत्र, श्रद्धा और रहस्य का अद्भुत संगम माना जाता है।
कहा जाता है कि जहाँ देवी सती की नाक (नासिका) गिरी थी, वहीं यह पीठ स्थापित हुआ — और इसी कारण इसे “सुगंधा” नाम मिला। इस भूमि से निकलती मृदु सुगंध आज भी माँ की उपस्थिति का प्रमाण देती है।
यहाँ की मिट्टी को भक्त शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानते हैं।
जो व्यक्ति जीवन में शनि साढ़ेसाती कब लगेगी, या सूर्य ग्रहण 2025 की तारीख जैसी ग्रहगत उलझनों से जूझ रहे हों, उन्हें यहाँ की देवी आराधना से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे, तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिराया।
जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
सुगंधा शक्तिपीठ वह स्थान है जहाँ माँ सती की नासिका गिरी थी।
यहाँ देवी को सुगंधा देवी और भैरव को त्र्यम्बक महादेव कहा गया है।
पौराणिक ग्रंथों में वर्णन है कि इस पीठ पर की गई साधना मन की अशुद्धियों को दूर करती है और साधक को आत्मिक शक्ति प्रदान करती है।
सुगंधा शक्तिपीठ का सबसे बड़ा रहस्य इसकी तांत्रिक ऊर्जा है।
यहाँ पर गुप्त नवरात्रि, शक्ति साधना और त्रिकाल आरती विशेष रूप से की जाती है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति यहाँ शनि साढ़ेसाती की शुरुआत के समय माता की उपासना करता है, उसके जीवन की अनेक बाधाएँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
साधक बताते हैं कि यहाँ रात्रि में साधना करते समय हवा में एक अद्भुत सुगंधित कंपन महसूस होता है — जैसे देवी स्वयं वहाँ उपस्थित हों।
यह स्थान सूर्य ग्रहण 2025 जन्म कुंडली हिंदी में कैसे देखें जैसी ज्योतिषीय घटनाओं की ऊर्जा को भी गहराई से प्रभावित करने वाला केंद्र माना जाता है।
सुगंधा देवी की उपासना का सीधा संबंध ग्रह दोषों और कर्म ऊर्जा से माना गया है।
कहा जाता है कि यदि किसी की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, मंगल दोष, या सूर्य की प्रतिकूल दृष्टि हो, तो यहाँ पूजा करने से उन दोषों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।
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सुगंधा देवी मंदिर में प्रतिदिन तीन बार आरती होती है — सुबह, दोपहर और रात्रि में।
विशेष अवसरों पर लाल चंदन, केसर, पुष्प और दीपदान का विशेष महत्व बताया गया है।
यहाँ नवरात्रि, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन विशेष हवन और देवी अभिषेक किए जाते हैं।
हर वर्ष चैत्र नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।
कहते हैं, इन दिनों में पूरे मंदिर परिसर में ऐसी सुगंध फैलती है जो आत्मा को शांति देती है।
📍 स्थान: शिकारपुर, बरिसाल ज़िला, बांग्लादेश
📿 मुख्य देवी: सुगंधा देवी
🕉️ भैरव: त्र्यम्बक महादेव
कैसे जाएँ:
भारत से ढाका के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं।
ढाका से बरिसाल तक बस या ट्रेन यात्रा लगभग 4–5 घंटे में पूरी होती है।
बरिसाल से शिकारपुर की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है, जिसे टैक्सी या लोकल वाहन से तय किया जा सकता है।
क्या देखें:
सुगंधा देवी का प्राचीन गर्भगृह
त्र्यम्बक भैरव मंदिर
शक्तिकुंड (जहाँ स्नान से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है)
मंदिर परिसर की दिव्य सुगंधित मिट्टी
टिप्स:
सुबह 6 से 9 बजे के बीच दर्शन का समय सबसे शुभ माना जाता है।
नवरात्रि या ग्रहण काल के दौरान आने पर विशेष साधना करें।
यहाँ की मिट्टी और पुष्पों को मंदिर से बाहर न ले जाएँ, यह पवित्रता का प्रतीक है।
आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में जब लोग मानसिक तनाव, आर्थिक दबाव या संबंधों की उलझनों में फँसे हैं,
सुगंधा देवी की भक्ति आंतरिक शांति और ऊर्जा संतुलन का सुंदर उपाय बन जाती है।
यह स्थान हमें सिखाता है कि जब मन और आत्मा सुगंधित हो,
तो कोई भी ग्रह या दशा हमें विचलित नहीं कर सकती।
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सुगंधा शक्तिपीठ न केवल एक देवी मंदिर है, बल्कि यह आस्था, तंत्र और आत्मशक्ति का जीवंत प्रतीक है।
यहाँ की मिट्टी में आज भी जो सुगंध है, वह केवल फूलों की नहीं बल्कि माँ की शक्ति की सुगंध है।
भक्त कहते हैं —
“जब जीवन की राह कठिन लगे, तो बस माँ सुगंधा के चरणों में एक दीप जलाना,
हर अंधकार खुद-ब-खुद मिट जाएगा।”
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