भारत की भूमि सदियों से आस्था और अध्यात्म का केंद्र रही है। यहाँ हर पर्वत, हर नदी और हर मंदिर में एक दिव्य कथा छिपी होती है। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है श्रीशैलम शक्तिपीठ, जहाँ भगवान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग और देवी भ्रामराम्बा शक्तिपीठ का अद्भुत संगम है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ शक्ति और शिव दोनों एक साथ विराजमान हैं — यह संगम न केवल भक्तों के लिए अद्वितीय है, बल्कि यह स्थान आत्मशक्ति और ज्ञान का प्रतीक भी है।
श्रीशैल पर्वत, जो आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित है, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक और अठारह प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ भगवान मल्लिकार्जुन (शिव) और देवी भ्रामराम्बा (पार्वती) की पूजा होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपमानित होकर अग्नि में देह त्याग दी, तब भगवान शिव ने शोक में उनके शरीर को लेकर ब्रह्मांड में तांडव किया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को विभाजित किया और जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने।
कहा जाता है कि सती का गला श्रीशैल पर्वत पर गिरा था। इसलिए यहाँ देवी को भ्रामराम्बा कहा जाता है, और यह स्थान श्रीशैलम शक्तिपीठ कहलाया।
देवी भ्रामराम्बा को “भ्रमर रूपिणी” कहा गया है, जिसका अर्थ है — जो दुष्ट शक्तियों का नाश करने के लिए भौंरे के रूप में अवतरित हुईं।
वहीं, भगवान मल्लिकार्जुन का नाम उनके दिव्य प्रेम से जुड़ा है — जब देवी पार्वती ने मल्लिका फूल के समान कोमल भाव से भगवान शिव की आराधना की, तब शिव ने स्वयं मल्लिकार्जुन रूप में प्रकट होकर उन्हें वरदान दिया।
यहाँ आने वाला हर भक्त महसूस करता है कि यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शक्ति और शिव के प्रेम का साक्षात प्रतीक है।
श्रीशैलम मंदिर परिसर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसकी वास्तुकला वास्तु शास्त्र हिंदी में के अनुसार अत्यंत सटीक और ऊर्जावान है। मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही मंत्रों की ध्वनि, घंटियों की गूंज और धूप की सुगंध वातावरण को पवित्र बना देती है।
मुख्य अनुष्ठान और पूजा:
सुबह और शाम आरती में “भ्रामराम्बा अष्टकम” और “शिव तांडव स्तोत्र” का पाठ होता है।
महाशिवरात्रि, नवरात्रि, और चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
देवी को शहद, हल्दी, और लाल पुष्प चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
यहाँ की एक विशेष परंपरा है — भ्रमर पूजा, जिसमें भौंरों को देवी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह अनुष्ठान भक्ति और प्रकृति के बीच अद्भुत सामंजस्य दर्शाता है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो श्रीशैलम की आराधना व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और मानसिक शांति लाती है।
जिन लोगों की महादशा चल रही हो या जिनकी कुंडली हिंदी में राहु, केतु या शनि की स्थिति असंतुलन ला रही हो, उन्हें यहाँ दर्शन और पूजा अत्यंत लाभदायक मानी जाती है।
यदि आप अपने त्रिकोण भाव को मजबूत करना चाहते हैं, तो इस शक्तिपीठ की आराधना आपके भीतर आत्मबल और निर्णय क्षमता को बढ़ाती है।
जो जातक अपने जीवन का गहन विश्लेषण करवाना चाहते हैं, वे ज्योतिष परामर्श लेकर अपने ग्रहों की स्थिति समझ सकते हैं।
जो लोग वैदिक ज्योतिष को गहराई से सीखना चाहते हैं, वे ऑनलाइन ज्योतिष कोर्स के माध्यम से “एस्ट्रोलॉजी इन हिंदी” सीख सकते हैं।
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स्थान: श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश
कैसे पहुँचे:
रेल मार्ग: कर्नूल या नेल्लोर रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद (230 किमी)।
सड़क मार्ग: हैदराबाद, कर्नूल और विजयनगरम से नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
क्या देखें:
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का गर्भगृह
देवी भ्रामराम्बा शक्तिपीठ
पातालगंगा नदी (जहाँ स्नान पवित्र माना गया है)
श्रीशैलम डैम से दिखने वाला मनोहर दृश्य
ट्रैवल टिप्स:
दर्शन का समय सुबह 4 बजे से दोपहर 1 बजे और शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक है।
नवरात्रि के समय भीड़ अधिक होती है, इसलिए पहले से ऑनलाइन दर्शन बुक करें।
दर्शन से पूर्व स्नान कर सफेद वस्त्र पहनना शुभ माना गया है।
आज की तेज़ जीवनशैली में जब मन अस्थिर हो जाता है, तब श्रीशैलम का वातावरण शांति प्रदान करता है।
यहाँ की भक्ति व्यक्ति को यह सिखाती है कि शक्ति (भ्रामराम्बा) और शिव (मल्लिकार्जुन) का संतुलन ही जीवन का मूल है।
यह संतुलन ज्योतिष के त्रिकोण भाव की तरह है — जो जीवन में स्थिरता, बुद्धि और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
जो व्यक्ति कुंडली मिलान ऑनलाइन या जीवनसाथी के साथ सामंजस्य खोज रहे हैं, उनके लिए यह स्थान मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत प्रेरणादायक है।
श्रीशैलम शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ शिव और शक्ति एक साथ पूजे जाते हैं।
यहाँ आने वाला हर भक्त न केवल धार्मिक आस्था बल्कि आत्म-शक्ति, प्रेम और संतुलन का अनुभव करता है।
माँ भ्रामराम्बा और भगवान मल्लिकार्जुन का यह संगम यह संदेश देता है
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