"नीयतां स्वगृहे मे हि सद्भक्त्या लिङ्गमुत्तमम्।
भूमौ लिङ्गं यदा त्वं च स्थापयिष्यसि यत्र वै।
स्थास्यत्यत्र न सन्देहो यथेच्छसि तथा कुरु ॥"
सरल अर्थ:
भगवान शिव ने रावण से कहा — "इस दिव्य शिवलिंग को अपने घर भक्तिभाव से ले जाओ, लेकिन ध्यान रहे, यदि इसे कहीं भूमि पर रख दिया, तो यह सदा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा।"
शिवपुराण के अनुसार, राक्षसराज रावण ने भगवान शिव को लंका ले जाने के लिए कठोर तपस्या की। उसने अपना एक-एक सिर शिवलिंग के चरणों में अर्पित किया। प्रसन्न होकर शिव ने उसे एक दिव्य लिंग दिया, पर शर्त रखी कि इसे रास्ते में भूमि पर नहीं रखा जाना चाहिए।
भगवान विष्णु की लीला से रावण को मूत्रोत्सर्ग का वेग हुआ और उसने शिवलिंग एक ग्वाले को पकड़ा दिया। ग्वाला भार सहन न कर सका और उसे धरती पर रख दिया। यहीं लिंग स्थापित हो गया और यही वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कहलाया।
यह स्थान चिताभूमि कहलाता है क्योंकि माता सती का हृदय यहाँ गिरा था। यही कारण है कि इसे हार्दपीठ शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
पद्मपुराण में भी वर्णन मिलता है —
"हार्दपीठस्य सदृशो नास्ति भूगोलमण्डले।"
अर्थात — पूरे ब्रह्मांड में हृदयपीठ के समान कोई भी शक्तिपीठ नहीं है।
कहा जाता है कि जो भक्त यहाँ श्रद्धा से अभिषेक करता है, वह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों से मुक्त हो जाता है। यही कारण है कि सावन में लाखों कांवड़िए 105 किलोमीटर (सुल्तानगंज से) पैदल ‘बोल बम’ के जयघोष करते हुए बाबा तक जल चढ़ाने आते हैं।
यही नहीं, यहाँ की नित्य आरती और दर्शन से असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते हैं।
✔️ गौरी मंदिर (हृदयपीठ)
✔️ शिवगंगा सरोवर
✔️ बैजू मंदिर (प्रथम पूजक बैजू भील)
✔️ त्रिकूट पर्वत और तपोवन
✔️ वासुकिनाथ मंदिर (पूर्ण यात्रा का आवश्यक भाग)
आपके जीवन में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और उनकी अनुकूलता भी आपके आध्यात्मिक सफर को प्रभावित करती है।
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श्रीवैद्यनाथ धाम केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, आस्था और मोक्ष का द्वार है। यहाँ बाबा के दर्शन मात्र से पाप नष्ट होते हैं, कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति का संचार होता है।
जब अगली बार आप देवघर आएँ, तो केवल बाबा का जलाभिषेक ही नहीं, बल्कि उनके प्रेम और कृपा का अहसास भी अपने जीवन में भरकर लौटें।