भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दसवां स्थान पाता है श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो गुजरात के द्वारका से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव ने भक्त सुप्रिय की रक्षा के लिए स्वयं प्रकट होकर दुष्ट राक्षस दारुक का संहार किया था।
"मध्ये ज्योतिःस्वरूपं च शिवरूपं तदद्भुतम्।
परिवारसमायुक्तं दृष्ट्वा चापूजयत्स वै॥
पूजितश्च तदा शम्भुः प्रसन्नो ह्यभवत्स्वयम्।
अस्त्रं पाशुपतं नाम दत्त्वा राक्षसपुंगवान्॥"
सरल अर्थ:
भक्त सुप्रिय ने जब शिव का स्मरण किया, तब स्वयं महादेव दिव्य ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए और पाशुपत अस्त्र लेकर राक्षसों का नाश किया।
दारुका नामक राक्षसी और उसका पति दारुक समुद्र तट पर धर्म का नाश कर रहे थे। भक्त सुप्रिय ने ‘नमः शिवाय’ का जप किया। उनकी करुण पुकार पर भगवान शंकर प्रकट हुए और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ अवस्थित हुए।
👉 इस कथा से हमें सीख मिलती है कि —
संकट में केवल शरणागति और भक्ति ही रक्षा करती है।
शिव सदैव भक्तवत्सल और दुष्टहन्ता हैं।
नागेश्वर धाम का दर्शन पाप, भय और रोगों से मुक्ति दिलाता है।
यहाँ भक्त प्रेमपूर्वक जलाभिषेक और पूजा करके जीवन की कठिनाइयों से छुटकारा पाते हैं।
विशेष रूप से महाशिवरात्रि में यहाँ जनसैलाब उमड़ पड़ता है।
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🙏 उत्तर है — शिव भक्ति और ज्योतिष, दोनों जीवन को संतुलित करते हैं।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक ज्योतिर्लिंग नहीं, बल्कि यह जीवित प्रमाण है कि जब भी भक्त सच्चे मन से भगवान शिव को पुकारता है, वे उसकी रक्षा के लिए सामने आ जाते हैं।
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