भारतीय ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और इसका मुख्य कारण है कि भारतीय ज्योतिष में सभी गणना मुख्य रूप से सूर्य को आधार मानकर सूर्योदय के समय से की जाती हैं। सूर्य को पृथक्कारी ग्रह के रूप में भी राहु और शनि की तरह देखा जाता है।
अर्थात सूर्य की दृष्टि जिस भाव पर होगी उससे जातक को किसी ना किसी तरीके से दूर या अलग करने का कारण बनेगा। सूर्य की एक ही दृष्टि होती है जिसे सातवीं दृष्टि कहा जाता हैं। इसके अलावा जिस राशि पर सूर्य स्थित है उसमें मित्र राशि पर होने से जातक को अनुकूल एवम् शत्रु राशि में होने पर प्रतिकूल प्रभाव देता है। ऐसा कई बार होता है कि हमारे लिए कुछ महीने बहुत ही कष्ट दायक तो कुछ लाभदायक होते हैं।
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मुख्यतः ऐसा अन्य ग्रहों की तरह सूर्य के भी बारह राशियों में से किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के कारण होता है। किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन या गमन होना गोचर कहलाता है। जैसे 14 जनवरी को जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश / गमन करते हैं तो उसे हम मकर संक्रान्ति कहते हैं क्योंकि यह सूर्य की संक्रान्ति कहलाती है।
सूर्य एक राशि में पूर्ण एक महीने रहते हैं। इसी तरह साल भर में सूर्य अपना मेष राशि से लेकर मीन राशि तक सीधे क्रम में ही पूरी बारह राशियों का भ्रमण / गोचर पूर्ण करते हैं। सूर्य और चंद्रमा कभी भी वक्री नहीं होते है। वक्री से तात्पर्य है: उदाहरण के तौर पर पहली तीन राशियाँ है मेष, वृषभ और मिथुन। मान लीजिए कोई ग्रह वृषभ राशि में है, यदि ग्रह राशि परिवर्तन करके मेष राशि में चला जाए तो यह राशियों के सीधा क्रम में न होकर विपरीत क्रम व्यतीत है। अतः ग्रह की चाल वक्री कहलाती हैं। और यदि वह ग्रह सीधे क्रम से राशि बदलकर वृषभ राशि से मिथुन राशि में गमन होगा तो सीधे क्रम में चलने के कारण यह चाल मार्गी कहलाती हैं। राहु और केतु हमेशा उल्टे क्रम में ही चलते हैं, अतः ये दोनों हमेशा वक्री ही रहते हैं, मार्गी कभी नहीं होते हैं।
जब सूर्य का गोचर विभिन्न राशियों में होता है तो आपकी कुंडली में जन्मराशि से भाव में पहुँचता हैं।
सटीक विश्लेषण के लिये किसी भी जातक की कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थितियाँ और उनके गोचर फल देखकर ही बताया जा सकता हैं।
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