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हिन्दू धर्म में तैतीस कोटि देवी देवताओं का समावेश है। उनमे भगवती काली भी है । काली का अर्थ है, जो "" काल"" कि पत्नी है, वही काली है। "" काल"" शब्द शिवजी के लिए कहा गया है, अतः काली ही शिव की पत्नी हैं !
भगवती काली का स्वरूप- भगवती काली के ललाट पर चंद्रमा स्थित है! उनके बाल खुले हुए हैं, ये तीन नेत्रो से युक्त हैँ। इनका स्वर अत्यधिक भयंकर है । ये अपने कानो में बालको के शव पहने हुए हैँ । इनके दोनों होटो से रक्त की धारा निरन्तर बह रही है। इनके दांत बाहर की ओर निकले हुए हैं ,जिनसे ये अपनी जीभ को दबाई हुई हैँ। इनके मुखारविंद पर निरन्तर हंसी व्याप्त रहती है। ये अपने गले में मुण्डमाला धारण करती हैं ! ये पूर्ण रूप स्व दिगम्भरा रहती हैँ , ये अपने हाथो में शवों की करधनी धारण की रहती हैँ । काली देवी के ऊपर वाले बांये हाथ में कृपाण है और नीचे वाले बांये हाथ में कटा हुआ सर है। इनके दांये ओर के हाथ में अभय और वरमुद्रा है। ये हमेशा युवती ही दिखाई देती हैँ । इनके विराट स्वरूप को देखकर दुष्ट एव पतित लोग भयभीत हो जाते हैँ । इनका वर्ण कृष्ण वर्ण हैं तथा इनका स्वरूप अचिन्त्य है। भगवती काली उत्तर आम्नाय की देवता कही गयी हैं। कलियुग में ये शीघ्र फल देंने वाली हैं!
ज्योतिष अनुसार हमारे धर्मग्रंथो में माता "काली" के ध्यान के अनेक क्रम बताये गए हैँ, किन्तु मंत्रो के आधार पर ही ध्यान के क्रम का वर्गीकरण किया गया है। उनके नाम कमशः इस प्रकार हैँ -:
१) कादि क्रम - जिन मंत्रो का आद्यक्षर ककार है एव जो ' क्रीं' से आराम्भ होता है, उन्हें कादि कहते हैँ । "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं दक्षिणकलिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं स्वाहा ।"
२) हादि- जिन मंत्रो में प्रथम वर्ण ' हकार' है तथा जो 'ह्रीं' से प्रारम्भ होता है , उन्हें हादिक्रम कहते हैं । " ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकलिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा !"
३) क्रोधादि - जिन मंत्रो का प्रथम अक्षर क्रोघ् बीज ' हूं' से प्रारम्भ हो उन्हें क्रोधादि कहते हैँ। " हूं हूं ह्रीं ह्रीं गृह्मे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा !"
४) प्रण वादि - जिन मंत्रो से पहले प्रणव या " ॐ" बीज हो, उन्हें प्रण वादि से सम्बोधित करते हैँ । " ॐ नमः आं क्रों आं क्रों फट् स्वाहा कालि कालिके हूं।"
५) नादि- जिन मंत्रो के आरम्भ में " नमः" शब्द हो ,उन्हें नादि कहते हैँ । " नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा
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