27 नक्षत्रों की श्रृंखला में अगर किसी बालक का जन्म गंडमूल के नक्षत्र में होता है तो उसे कई बार षुभ या कई बार अषुभ माना जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि हर नक्षत्र में 4 चरण होते हैं। गंडमूल नक्षत्र 6 नक्षत्रों को माना गया है इस तरह 6 नक्षत्रों के 6 गुणा 4 अर्थात कुल 24 चरण होते हैं, जिनमें किसी बालक का जन्म होता है। इन गंडमूल नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैः-
1 अष्विनी, 2 मघा, 3 रेवती, 4 मूल, 5 अष्लेषा, 6 ज्येष्ठा
1. अश्विनी नक्षत्रः
प्रथम चरणः अश्विनी गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह उसके पिता के लिए अषुभ होता है, पिता को कष्ट, स्वास्थ्य संबंधी समस्या, रोजगार की हानि या मानहानि हो सकती है।
द्वितीय चरण: इसी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म शुभ होता है, इसमें जन्में बालक को बचपन में माता- पिता द्वारा भौतिक सुविधाऐं मिलने का योग होने के कारण उसके माता पिता को भौतिक सुविधाओं का लाभ मिलता है, बडा होकर यह बालक स्वंय भौतिक सुविधाओं का लाभ प्राप्त करता है।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्में बालक को बडे होकर मंत्री पद अर्थात सरकारी उच्च पद प्राप्त होता है।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक मान सम्मान प्राप्त करता है, बिजनेस या नौकरी में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है जैसे डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील आदि। प्रतिष्ठा के कारण पैसा अपने आप प्राप्त होगा।
इस नक्षत्र में प्रथम चरण में जन्मे बालक के लिए शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
2. मघा नक्षत्रः
प्रथम चरणः मघा गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह उसकी माता के लिए अषुभ होता है, माता का स्वास्थ्य संबंधी समस्या, केरियर में गिरावट हो सकती है।
द्वितीय चरण: मघा गंडमूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह उसके पिता के लिए अषुभ होता है, पिता को कष्ट, स्वास्थ्य संबंधी समस्या, उनके केरियर में गिरावट हो सकती है।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्में बालक बडा धनवान होता है। तृतीय एवं चतुर्थ चरण इस नक्षत्र के अच्छे हैं। जीवन में धन का बडा महत्व है और इस चरण में जन्मा बालक जीवन भर धन के अभाव से दूर रहेगा।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक चाहे धनवान न हो परन्तु सदैव संतोषी रहेगा। मानसिक व शारिरीक स्वस्थ होगा, मान सम्मान प्राप्त करेगा तथा जीवन का आनन्द लेगा।
इसमें प्रथम व द्वितीय चरण में जन्मे बालक के लिए जन्म के 7वें या 12वें दिन शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
3. रेवती नक्षत्रः
प्रथम चरणः रेवती गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह अत्यन्त शानदार है, भाग्य को बढाने वाला तथा राज्य सम्मान को दिलाने वाला होता है जैसे- प्रमाणपत्र, मेडल, प्रषस्तिपत्र आदि।
द्वितीय चरण: रेवती गंडमूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह भी प्रथम चरण के समान ही है, बस यहाॅ मान सम्मान मिलता है अर्थात राज्य सम्मान नहीं मिलेगा परन्तु समाज व परिवार का सम्मान प्राप्त होगा।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्में बालक बडा राजनैतिक मंत्री या बडा सरकारी अधिकारी होता है।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक नकारात्मक है। यह अपनी आयु के 10 वर्ष तक स्वास्थ्य संबंधी परेषानियों से घिरा रहता हैं। बडे होने पर पढाई, नौकरी या व्यवसाय में रुकावट आती है।
इसमें चतुर्थ चरण में जन्मे बालक के लिए जन्म के 8 वें या 12वें दिन शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
4. मूल नक्षत्रः
प्रथम चरणः मूल गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह बहुत शुभ है, राज्य सम्मान, भौतिक सुख- मकान, गाडी सब दिलाने वाला होता है। सरकार से सम्मानित किया जाता रहेगा।
द्वितीय चरण: मूल गंडमूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह हानि करता है, इस बालक को बचपन में कष्ट झेलना पडता हैै, वह बीमार रहता है।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मे बालक के कारण माता को स्वास्थ्य संबंधी परेषानियों का सामना करना पडता है।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक पिता के स्वास्थ्य के लिए कष्ट दायक है। इसके जन्म के बाद पिता के स्वास्थ्य में गिरावट होती है। पिता को धन संबंधी परेषानियाॅ भी आ सकती हैं।
इसमें दूसरे, तीसरे और चैथे चरण में जन्मे बालक के जन्म के 27वें दिन शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
5. अष्लेषा नक्षत्रः
प्रथम चरणः अष्लेषा गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह माता के लिए अशुभ होता है।
द्वितीय चरण: अष्लेषा गंडमूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह भी पिता के लिए अषुभ है, यह पिता को रोग या धन का कष्ट दे सकता है।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मे बालक को स्वास्थ्य संबंधी परेषानियों का सामना करना पडता है।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक अत्यन्त सुखदायी है। यह भौतिक सुख का अधिकारी होती है, माता-पिता की भी बालक के जन्म के बाद सुख सुविधाओं में वृध्दि, उन्नति होती है।
इसमें प्रथम, दूसरे, और तीसरे चरण में जन्मे बालक के जन्म के 27वें दिन शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
6. ज्येष्ठा नक्षत्रः
प्रथम चरणः ज्येष्ठा गंडमूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह बालक के लिए शुभ होता है, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, समृध्दि दिलाने वाला होता है, केरियर अच्छा रहता है, उच्च पद प्राप्त होता है, धन भी मिलेगा।
द्वितीय चरण: ज्येष्ठा गंडमूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में अगर किसी बालक का जन्म होता है तो वह अषुभ है, यह बालक के बडे भाई या बडी बहन को कष्ट दे सकता है।
तृतीय चरणः इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मे बालक की माता को स्वास्थ्य संबंधी परेषानियों का सामना करना पडता है, केरियर, बिजनेस को हानि हो सकती है।
चतुर्थ चरण: चतुर्थ चरण में जन्मा बालक अपने बाल्यकाल में स्वंय कष्ट पाता है, वह बचपन में बहुत बीमार रहता है ।
इसमें दूसरे, तीसरे और चैथे चरण में जन्मे बालक के जन्म के 27वें दिन शांति अवष्य कराई जानी चाहिए।
इस प्रकार हमने पाया कि 6 गंडमूल के नक्षत्रों में नक्षत्र के कुछ चरणों में जन्म लेना शुभ फलदायी होता है, गंडमूल नक्षत्र सदैव अषुभ नहीं होते।