 
                    भारत की उत्तर-पूर्वी धरती, जहाँ प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में बसती है, वहीं छिपा है एक ऐसा शक्तिपीठ जो आस्था, इतिहास और रहस्य का अद्भुत संगम है — जयंती शक्तिपीठ।
यह वही स्थान है जहाँ देवी सती की बाईं जांघ (left thigh) गिरी थी, और तब से यह स्थल माँ जयंती देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि ज्योतिष, तंत्र और आध्यात्मिक ऊर्जा का जीवंत प्रतीक भी है।
जयंती शक्तिपीठ भारत के मेघालय राज्य के जैंतिया हिल्स (Jaintia Hills) में स्थित है।
यह स्थान कभी जैंतिया साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था — एक ऐसा राज्य जहाँ देवी की पूजा शक्ति, समृद्धि और रक्षा की भावना से की जाती थी।
यहाँ देवी का नाम जयंतेश्वरी देवी माना जाता है और उनके साथ पूजित भैरव को कामेश्वर कहा जाता है।
भक्तों का विश्वास है कि इस स्थान की मिट्टी में आज भी देवी सती की चेतना बसती है, और जो सच्चे मन से यहाँ श्रद्धा लेकर आता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के देहांत के बाद उनके शरीर को लेकर तांडव करने लगे,
तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े किए ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे।
जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
कहा जाता है कि जयंती शक्तिपीठ वह स्थान है जहाँ माँ सती की बाईं जांघ गिरी थी।
यहाँ की भूमि इसलिए इतनी ऊर्जावान है कि ध्यान और साधना करने वाले साधक इसे “चेतन भूमि” कहते हैं।
पुराने ग्रंथों के अनुसार, जैंतिया राजाओं ने इस मंदिर को अपनी राज्य देवी माना था और युद्ध से पहले देवी से आशीर्वाद लेना अनिवार्य माना जाता था।
माँ जयंती की पूजा यहाँ नवरात्रि और शक्ति साधना पर्व में विशेष रूप से की जाती है।
भक्त लाल वस्त्र, पुष्प, नारियल और दुग्ध अर्पण करते हैं।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में ग्रह दोष कैसे दूर करें यह जानना चाहता है,
उसे माँ जयंती की आराधना अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि उनकी शक्ति सभी ग्रहों का प्रभाव संतुलित करने में समर्थ है।
यहाँ प्रतिदिन तीन बार आरती होती है, और पूर्णिमा की रात्रि में मंदिर परिसर में एक दिव्य प्रकाश अनुभव किया जा सकता है।
स्थानीय लोग इसे “देवी की उपस्थिति” का संकेत मानते हैं।
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि प्रत्येक शक्तिपीठ किसी न किसी ग्रह या योग से जुड़ा होता है।
जयंती शक्तिपीठ का संबंध विशेष रूप से चंद्रमा और शुक्र ग्रह से माना जाता है।
यह स्थान भावनात्मक संतुलन, सौंदर्यबोध और आंतरिक शांति प्रदान करता है।
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📍 स्थान: जैंतिया हिल्स, मेघालय
🙏 मुख्य देवी: माँ जयंतेश्वरी देवी
🕉️ भैरव: कामेश्वर
कैसे पहुँचे:
गुवाहाटी से जैंतिया हिल्स की दूरी लगभग 180 किमी है।
गुवाहाटी से शिलांग होते हुए सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है (लगभग 5-6 घंटे का सफर)।
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन गुवाहाटी और हवाई अड्डा शिलांग एयरपोर्ट है।
क्या देखें:
जयंतेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर
कामेश्वर भैरव स्थल
पहाड़ियों के बीच बहती मायांग नदी
स्थानीय जनजातीय मेले और नृत्य परंपराएँ
यात्रा टिप्स:
सुबह 6 बजे से 9 बजे के बीच दर्शन शुभ माना जाता है।
नवरात्रि या पूर्णिमा के समय यहाँ की यात्रा विशेष फलदायी मानी जाती है।
बरसात के मौसम में यात्रा से बचें क्योंकि पहाड़ी रास्ते फिसलन भरे हो जाते हैं।
आज की व्यस्त जीवनशैली में जहाँ मनुष्य तनाव, असंतुलन और मानसिक थकान से गुजरता है,
वहाँ माँ जयंती की उपासना आत्मविश्वास और स्थिरता देती है।
ज्योतिष की दृष्टि से यह स्थान उन लोगों के लिए विशेष फलदायी है जिनकी कुंडली में चंद्र दोष, शुक्र की अशुभ स्थिति या मानसिक अस्थिरता के योग हैं।
माँ की उपासना से व्यक्ति अपने जीवन के ग्रह दोष को धीरे-धीरे संतुलित कर पाता है।
देवी का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है —
“शक्ति भीतर है, उसे जागृत करना ही सच्ची साधना है।”
जयंती शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ देवी सती की चेतना आज भी जीवित है।
यहाँ की वायु, ध्वनि और भूमि — सब कुछ देवी के आशीर्वाद से भरी है।
जो भक्त यहाँ आते हैं, वे कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है मानो माँ स्वयं उनके भीतर शक्ति का संचार कर रही हों।
यह स्थान हमें याद दिलाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, देवी की शक्ति सदा अजर-अमर है —
और वही शक्ति हमारे भीतर भी विद्यमान है।
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