हर साल संतान प्राप्ति के लिए श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता हैं।
मान्यता: इस दिन व्रत करने के बाद अगर व्यक्ति श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा सुनता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती हैं और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं। हिंदू धर्म में व्रतों का काफी महत्व है, इनमे एकादशी व्रत विशेष तौर पर श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस दिन निर्जला व्रत रखना उत्तम माना जाता हैं। और अगर निर्जला व्रत संभव न हो तो फलहारी भी रखा जा सकता हैं। कहा जाता है की पुत्रदा एकादशी व्रत के दौरान खान पान और व्यवहार में संयम रखना चाहिए, इससे भगवान विष्णु और शिव की कृपा का आशीर्वाद मिलता हैं।
पुत्रदा एकादशी महात्म्य एवम कथा:
महिष्मति नाम की एक नगरी थी जहा महाजित नाम का एक राजा था। पुत्रहीन होने के कारण वह सदा दुखी व् निराश रहता था। राजा के लिए राज्य और वैभव सभी कुछ बड़ा कष्ट दायक था क्योकि ऐसा माना जाता है संतान के बिना मनुष्य को लोक और परलोक में सुख नही मिलता हैं। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय करें परन्तु उनका हर उपाय पिछले जन्म के कर्मों के कारण निष्फल रहा। राजा के पिछले जन्म में जब एक गर्भवती गाय जल पी रही थी तब राजा ने उसे प्यासी ही भगा दिया और स्वयं जल पीने लगे। इसलिए राजा को यह कष्ट भोगना पड़ा और उनकी कुंडली में संतान दोष आ गया। शास्त्रों के अनुसार पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं तो राजा ने ऋषियों द्वारा बताए गए उपाय, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण किया गया। इस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भधारण किया और नौ माह पश्चात एक अत्यंत तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।
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इसके पश्चात श्रावण एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना गया। सावन की पुत्रदा एकादशी को विशेष फलदायी माना जाता हैं। इस व्रत को करने से संतान संबधी हर चिंता और समस्याओं का अंत होता हैं। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही अनंत यज्ञ का फल प्रात होता हैं। अगर कुंडली में संतान दोष दिखता है और वह दंपती संतान के इच्छुक हैं तो दंपती को विधिपूर्वक श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से ईह लोक में सुख और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।
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ममता अरोरा
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