श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जो गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास तीर्थ पर स्थित है, हिंदू धर्म की एक अत्यंत पवित्र स्थल है। इसे भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख माना जाता है। यह मंदिर आस्था, भक्तिभाव और एकता का प्रतीक है। इस पवित्र स्थान पर हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं, भगवान शिव के दर्शन कर मनोकामनाएं पूरी करने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शिवपुराण की कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 बेटियों का विवाह चंद्रदेव से कराया था। लेकिन चंद्रमा अपनी एक पत्नी रोहिणी से बहुत अधिक प्रेम करते थे, जिससे बाकी पत्नियों को कष्ट हुआ। वे अपने पिता के पास जाकर इस बेइमानी की शिकायत करने लगीं।
दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया:
"हे चंद्रमा! तुम्हें सभी पत्नियों से बराबर प्रेम करना चाहिए, किसी में भेदभाव नहीं करना चाहिए। ऐसा न करने पर तुम्हें कष्ट मिलेगा।"
चंद्रमा की उपेक्षा के कारण दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दे दिया। इससे चंद्रमा का तेज कम होने लगा और सृष्टि में अत्यंत संकट उत्पन्न हो गया। अन्न और औषधियों की कमी होने लगी। देवता तथा ऋषि इस संकट से निपटने के लिए प्रभास तीर्थ में शिवजी की कठोर तपस्या करने लगे।
छह महीने की कठिन तपस्या और महामृत्युञ्जय मंत्र के जाप से भगवान शिव प्रसन्न हुए तथा श्राप कम कर पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को पुनः तेजस्वी बनाने का वर दिया। इसी कारण इस क्षेत्र में शिवलिंग "सोमनाथ" के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
शिवपुराण का श्लोक और अर्थ
प्रभासं च परिक्रम्य पृथिवीक्रमसम्भवम् ।
फलं प्राप्नोति शुद्धात्मा मृतः स्वर्गे महीयते ॥
सोमलिङ्गं नरो दृष्ट्वा सर्वपापात्प्रमुच्यते ।
लब्ध्वा फलं मनोऽभीष्टं मृतः स्वर्गं समीहते ॥
सरल भाषा में:
जो भी प्रभास तीर्थ की परिक्रमा करता है और सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, वह अपने सारे पापों से मुक्त होता है और मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त होता है।
इतिहास: बार-बार पुनर्निर्माण की श्रद्धा की गाथा
श्री सोमनाथ मंदिर प्रकांड इतिहास का साक्षी है। इस मंदिर को कई बार विध्वंस का सामना करना पड़ा – 1024 ईस्वी में महमूद गजनवी ने इसे तोड़ा। बार-बार मुगल व अन्य शासकों ने इसे ध्वस्त करने की कोशिश की। फिर भी हर बार श्रद्धालु और भारतीयों की भक्ति ने मंदिर को भव्य रूप में पुनः खड़ा कर दिया।
आज का भव्य मंदिर 1951 में पुनर्निर्मित हुआ और 1962 में पूर्ण हुआ। इसकी ऊंचाई 150 फुट है और कलश 10 टन वजन का है। समुद्र के किनारे स्थित यह मंदिर आंतरिक और बाह्य रूप से अत्यंत सुंदर एवं भव्य है।
यात्रा की सुविधा: कैसे पहुंचे और कहां ठहरें?
प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन: वेरावल (लगभग सात किलोमीटर दूर)
नजदीकी एयरपोर्ट: केशोद (55 किलोमीटर) और दिउ (90 किलोमीटर)
सड़क मार्ग से भी अच्छी बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए श्रीसोमनाथ ट्रस्ट की सुविधाएं, धर्मशालाएं तथा गेस्ट हाउस मौजूद हैं।
मंदिर की खासियतें और पूजा विधान
यहां प्रतिदिन हरिद्वार, काशी, प्रयाग से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक होता है। पूजा का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे और शाम 4 बजे से 7 बजे के बीच है। महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, जन्माष्टमी के त्योहारों पर तीर्थ स्थल भव्य उत्सव और चहल-पहल से भर उठता है।
यहां का साउंड एवं लाइट शो, समुद्री तट की लहरों की आवाज और भक्तों का प्रेम अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
आध्यात्मिक महत्व
श्रीसोमनाथ की यात्रा से मन को अमोघ शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह मंदिर भक्तों के लिए परम शुभ फल देने वाला है, जहाँ आकर सभी अपने जीवन के संकर्षणों से मुक्त हो सकते हैं।
श्रीसोमनाथ न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि यह भारतीय सनातन धर्म की अमिट पहचान है।
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श्रीसोमनाथ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का अनमोल धाम है। यहां आकर न सिर्फ भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि जीवन में एक नई ऊर्जा और आत्मिक शांति का अनुभव भी होता है। एक बार इस पावन मंदिर की यात्रा अवश्य करें, ताकि आपकी आस्था और विश्वास और भी दृढ़ हो सके।
हर हर महादेव, जय श्रीसोमनाथ!
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