भारत की आध्यात्मिक भूमि पर ऐसे कई पवित्र स्थल हैं जहाँ देवी शक्ति के विविध रूपों की आराधना होती है। लेकिन इनमें से कालीघाट शक्तिपीठ का स्थान सबसे विशिष्ट है। यहाँ माँ काली की उग्रता और सती की करुणा दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के मध्य स्थित यह शक्तिपीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, तंत्र साधना और भक्ति का भी प्रतीक है।
कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर अग्नि में आत्मदाह किया, तो शोकाकुल भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया। जहाँ-जहाँ वे अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
कालीघाट शक्तिपीठ वह पवित्र स्थान है जहाँ देवी सती का दाहिना पैर का अंगूठा गिरा था। इस कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहाँ माँ काली को "कालीघाटवाली माँ" के नाम से जाना जाता है, जबकि भगवान शिव “नकुलेश्वर भैरव” के रूप में विराजमान हैं।
कालीघाट में माँ काली की मूर्ति का स्वरूप अत्यंत अद्भुत है — उनकी जीभ बाहर निकली हुई है, शरीर काला है, और वे असुरों का संहार करती हुई दिखाई देती हैं। यह उग्रता केवल नाश की नहीं, बल्कि अज्ञान और अहंकार के विनाश की प्रतीक है।
कहा जाता है कि माँ काली का यह रूप भले ही भयावह प्रतीत हो, लेकिन उनके हृदय में सच्चे भक्तों के लिए करुणा और मातृत्व का सागर उमड़ता है। यही कारण है कि जो भक्त सच्चे मन से माँ की शरण में आता है, उसे जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
ज्योतिष के अनुसार, माँ काली महादशा में चल रहे कठिन ग्रह प्रभावों को शांत करती हैं। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में त्रिकोण भाव (भाग्य और धर्म भाव) कमजोर होता है, तब काली साधना या काली मंत्र जाप से आत्मिक शक्ति और ग्रह संतुलन प्राप्त किया जा सकता है।
इसके अलावा, जिन लोगों की कुंडली हिंदी में राहु या केतु का प्रभाव अधिक होता है, या जिनका अयनांश असंतुलित है, उनके लिए कालीघाट में दर्शन और ध्यान अत्यंत शुभ फल देता है।
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हर वर्ष यहाँ काली पूजा, दुर्गा पूजा, दीपावली और अमावस्या के दिन विशेष रूप से मनाए जाते हैं। इन दिनों मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्त नारियल, लाल चुनरी, और काले तिल चढ़ाकर माँ से आशीर्वाद मांगते हैं।
यहाँ की एक विशेष परंपरा है “बलिदान प्रथा” जो अब प्रतीकात्मक रूप में की जाती है। इस प्रथा के अनुसार, भक्त अपने अंदर के नकारात्मक विचारों और अहंकार का “बलिदान” करते हैं।
स्थान: कालीघाट मंदिर कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के दक्षिण भाग में स्थित है।
कैसे पहुँचें:
क्या देखें:
ट्रैवल टिप्स:
आज के तनावपूर्ण समय में, जब व्यक्ति मानसिक अस्थिरता और निर्णयहीनता से जूझ रहा है, माँ काली का ध्यान उसे भीतर की शक्ति से जोड़ता है। जो लोग अपने जीवन में नए आरंभ की तलाश में हैं या जिनकी महादशा में संघर्ष चल रहा है, उनके लिए माँ काली की उपासना आत्मबल और साहस प्रदान करती है।
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कालीघाट शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था और आत्मशक्ति का केंद्र है। यहाँ माँ काली के उग्र रूप में छिपी करुणा हमें सिखाती है कि जीवन में अंधकार चाहे जितना गहरा हो, भीतर की रोशनी हमेशा हमें राह दिखाती है।
माँ काली का आशीर्वाद न केवल भय और संकट को दूर करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में त्रिकोण भाव को मजबूत बनाकर भाग्य को भी जाग्रत करता है। एक बार कालीघाट की भूमि पर पहुँचने के बाद, हर भक्त यह अनुभव करता है कि सच्ची शक्ति बाहर नहीं, बल्कि उसके अपने भीतर ही निवास करती है।