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कौन से नक्षत्र है जिन्हें गंडमूल के नाम से जाना जाता है ?
ये नक्षत्र है - अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती
इस नक्षत्र में जन्म लेने से गंडमूल योग बनता है |
मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा ये तीन गंड कारक होते हैं।
अश्विनी, रेवती और मघा ये तीन अपगंड नक्षत्र होते हैं। मू
ल, ज्येष्ठा व आश्लेषा की अंतिम चार घड़ी (1.36 मिनट) गंड कहलाती है।
सामान्यतः इन तीनों नक्षत्रों को गंड माना है।
मूल और ज्येष्ठा का बुरा प्रभाव दिन में, आश्लेषा और मघा का बुरा प्रभाव रात्रि में, अश्विनी और रेवती का बुरा प्रभाव सायं काल में होता है। अश्विनी का प्रथम चरण, मघा के पहले दो चरण व रेवती का अंतिम चरण अनिष्ट कारक होता है। गंडमूल नक्षत्रों में जन्मे जातक पर नकारात्मक प्रभाव तो अवश्य पड़ता ही है विशेष रूप से कई बार जन्म समय से ही बच्चे को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा माता-पिता पर भी इसका दुष्प्रभाव कई बार देखा जा सकता है।गंडमूल नक्षत्रों में उत्पन्न होने वाले जातक ज्योतिष शास्त्र के दृष्टिकोण से अरिष्टकारक होता है क्योंकि इन नक्षत्रों में पैदा होने वाले जातकों को न तो पिछली राशि, नक्षत्र तथा न ही प्रारंभ होने वाले नक्षत्र एवं राशि का फल प्राप्त होता है। रात में जातक का जन्म हो और गंडांत दोष हो तो माता को बहुत कष्टकारी होता है।
दिन के गंडयोग में कन्या का जन्म हो और रात में पुरूष जातक का जन्म हो तो यह दोष बहुत कम बल्कि न के बराबर हो जाता है। गंडमूल नक्षत्र की शांति वापस उसी नक्षत्र के आने पर 27 दिन बाद की जानी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में तो यहाँ तक कहा गया है की शांति के बाद ही पिता को बच्चे का मुंह देखना चाहिये। 6 माह व 12 दिन में शांति करने का विधान भी कुछ ज्योतिषाचार्यों ने माना है।
आइये जानते है गंडमूल नक्षत्रों का जातक पर क्या प्रभाव होता है—-?
अश्विनी नक्षत्र : मेष राशि एवं केतु के इस नक्षत्र में पैदा हुए जातक सुंदर, सौभाग्ययुक्त, चालाक, स्त्री प्रिय, शूरवीर, बुद्धिमान, दृढ़निश्चयी, जल्दबाज, निरोग, राजपक्ष से लाभ कमाने वाले और संघर्षमय जीवन व्यतीत करते हैं।
अश्विनी प्रथम चरण : पिता के लिए कष्टकारक।
दूसरा चरण : अधिक पैसा खर्च करने वाले।
तीसरा चरण : घूमने वाला (भ्रमणशील)
चौथा चरण : अपने शरीर के लिए कष्टकारी
आश्लेषा नक्षत्र : कर्क राशि व बुध के नक्षत्र में पैदा हुये जातक शीघ्र ही बदल जाने वाले, धनवान, कलाकार, चतुर बुद्धि, लोगों के काम करने में तत्पर, खाने-पीने के शौकीन व हंसमुख होते हैं। अगर यह नक्षत्र पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक धूर्त, क्रूर कार्य करने वाला, परस्त्रीगामी, व्यसनी, स्वार्थी तथा शीघ्र क्रुद्ध हो जाता है।
आश्लेषा प्रथम चरण : विशेष दोष नहीं।
दूसरा चरण : पैतृक धन हानि
तीसरा चरण : माता या सास के लिए अरिष्ट कारक
चतुर्थ चरण : पिता को कष्टकारी
मघा नक्षत्र : सूर्य की राशि सिंह एवं केतु के नक्षत्र में पैदा हुये जातक स्पष्टवादी, मुंहफट, जल्दी गुस्सा करने वाले व हठी प्रकृति के होते हैं। कठोर मन वाला और स्त्री पक्ष से द्वेष रखने वाला होता है।
मघा प्रथम चरण : माता या मातृ पक्ष को हानि।
दूसरा चरण : पिता को अरिष्ट
तीसरा चरण : शुभ फलदायक
चौथा चरण : विद्या और धन के लिए शुभ होता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र : मंगल की राशि (वृश्चिक) बुध के इस नक्षत्र में पैदा हुये जातक क्रोधी, सरल हृदय, अध्ययनशील, स्पष्टवादी, तर्कशील, वाकयुद्ध में प्रवीण, धार्मिक, सहयोगी व अहंकारी होते हैं।
ज्येष्ठा प्रथम चरण : बड़े भाई को अरिष्ट
दूसरा चरण : छोटे भाई को अरिष्ट
तीसरा चरण : माता या नानी को अरिष्ट
चौथा चरण : जातक स्वयं को अनिष्टकारी ज्येष्ठा नक्षत्र के संपूर्ण मान को दस भागों में विभाजित करें।
यदि ज्येष्ठा नक्षत्र का कुल मान 60 घड़ी है तो 10 द्वारा भाग देने पर प्रत्येक खंड का मान 6 अंश होगा। इसका फल नीचे लिखे विभाग संखया द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
मूल नक्षत्र : केतु के नक्षत्र और गुरु की राशि धनु में पैदा जातक धार्मिक, उदार हृदय, धनी, ईमानदार, मिलनसार, परोपकारी, नीतिवान, सामाजिक कार्यों में व्यस्त और अच्छे संस्कारों से युक्त होते हैं। सामान्यतया समस्त मूल नक्षत्र को अरिष्ट कारक माना गया है।
मूल नक्षत्र में पैदा हुये जातक का शुरू एवं अंत की घड़ियों में विद्वान आचार्यों में मतांतर पाया जाता है।
मूल प्रथम चरण – पिता का नाश
दूसरा चरण – माता का नाश
तीसरा चरण – धन का नाश
चौथा चरण – जातक सुखी, धनी , मूल नक्षत्र के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं। लेकिन जयार्णव नामक ग्रंथ में मूल नक्षत्र के बारे में विशेष पद्धति से बताया गया है जोकि प्रचलित तथा मान्यताप्राप्त हैं। मूल नक्षत्र का संपूर्ण मान 60 घड़ी है। इसे 8 विभागों में बांटा है। इस प्रकार 7+8+10+11+12+5+4+3 = 60 घड़ी।
अब दूसरे प्रकार से अनिष्ट देखते हैं। संपूर्ण मूल नक्षत्र के मान को 15 से विभाजित करें। देखें कि जन्म समय मूल नक्षत्र के कितने घड़ी पल व्यतीत हो चुके हैं। जिस खंड में जन्म हो, इसके अनुसार अनिष्ट फल होगा।
1. पिता
2. पिता का भाई
3. बहनोई
4. पितामह
5. माता
6. मौसा
7. मामा
8. ताई या चाची
9. सर्वस्व
10. पशु
11. नौकर
12. स्वयं जातक
13. बड़ा भाई
14. बहन
15. नाना।
रेवती नक्षत्र : बुध के नक्षत्र और गुरु की राशि मीन में पैदा हुये जातक धनवान, सुंदर, तर्कशील, विद्यावान, पुत्र एवं कुटुंब से युक्त, बुद्धिमान, धार्मिक अध्ययनशील, सरल स्वभाव के होते हैं।
रेवती के प्रथम चरण : राजा के समान वैभवशाली
दूसरा चरण : मंत्री के समान सुखी
तीसरा चरण : धनवान
चौथा चरण : माता-पिता के लिए आरिष्टकारी।
केवल नक्षत्र गण्डांत पर ही विचार नहीं किया जाता अपितु तिथि एवं लग्न के भी गण्डांत का विचार किया जाता है।
नक्षत्र गण्डांत पर अपवाद : वशिष्ठजी का मत है कि अगर जातक का रात्रि में मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में अथवा दिन में मूल के दूसरे चरण में जन्म हो तो जातक माता-पिता के लिये अरिष्ट कारक नहीं होता।
गर्गाचार्य का मत है कि रविवार को अश्विनी, बुध या रविवार को हस्त, चित्रा, स्वाती अनुराधा, ज्येष्ठा अथवा रेवती नक्षत्र में जन्म हो तो त्रिविध गण्डांत का दोष नहीं होता। चंद्रमा की शुभ स्थिति में कुंडली में केंद्र और त्रिकोण में शुभ एवं उच्च के ग्रहों की स्थिति में गंडमूल नक्षत्रों का प्रभाव बलहीन हो जाता है। मंत्रेश्वर महाराज ने बहुत सुंदर लिखा है कि लग्न और लग्नेश के बलवान होने से सारी कुंडली सुधर जाती है। त्रिकोण (5, 9) व केंद्र (1, 4, 7, 10) में बलवान बुध होने पर 100 दोषों का तथा बलवान शुक्र होने पर 200 दोषों का और बलवान गुरु होने पर एक लाख दोषों का नाश हो जाता है। इसी तरह लग्नेश केंद्र या लग्न नवांशेश हो तो वह भी दोष समूह को इस प्रकार शांत करता है जैसे अग्नि रूई को जला देती है।
जानिए गंडमूल नक्षत्रों के उपाय कब करना चाहिये—-?
जिस गंडमूल नक्षत्र में बच्चे का जन्म हो वही नक्षत्र 27 दिन के बाद आए या जन्म से 12वें दिन अथवा आठवें वर्ष में जब कभी भी शुभ समय में अपना जन्म नक्षत्र हो। इसी नक्षत्र में किसी सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा नक्षत्र, ग्रह, देवी-देवताओं का पूजन और हवन कराना चाहिए।
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