निर्वाण षट्कम् अद्वैत और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर आधारित एक महान स्तोत्र है। यदि आपकी कुंडली में गुरु (Jupiter) कमजोर हैं और जीवन में मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान या मोक्ष की आवश्यकता महसूस हो रही है - तो इस स्तोत्रीय पाठ का नियमित अभ्यास अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
Nirvana Shatkam is a hymn of Advaita and self-realization. If Jupiter is weak in your horoscope and you seek mental peace, self-knowledge, or liberation, reciting this shatkam brings positive results. Download Free PDF
यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र वास्तव में “Atmaṣaṭkam” के नाम से भी प्रसिद्ध है, जिसमें “मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम्…” आदि पंक्तियाँ आती हैं।
निर्वाण षट्कम् स्तोत्र किसी विशेष देव-देवी को संबोधित स्तुति-गीत नहीं है बल्कि आत्म-स्वरूप और चेतना-स्वरूप की अनुभूति को उद्घाटित करता है।
यहाँ मूल विषय है– “मैं क्या नहीं हूँ” यह जानना, और अंततः यह स्वीकार करना कि “मैं शुद्ध चेतना (चिदानन्द स्वरूप) हूँ, शिव स्वरूप हूँ।”
जब आपकी कुंडली में गुरु ग्रह कमजोर हो, अर्थात् ज्ञान-मार्ग, अध्यात्म-चिंतन, मानसिक स्थिरता में बाधा हो रही हो - तब इस स्तोत्र का पाठ स्व-विवेक बढ़ाने, मानसिक अस्पष्टता दूर करने, आत्म-चेतना जागृत करने का उपाय माना जाता है।
इसके अलावा, यदि जीवन में मोक्ष-भाव, अंतर्ध्यान-चिंतन, शांति-कामना अधिक हो - यह पाठ उस दिशा में योगदान दे सकता है।
इस प्रकार, वास्तु-ज्योतिष की दृष्टि से यह उपाय उन परिस्थितियों में उपयोगी है जहाँ व्यक्ति जीवन-रूप, उद्देश्य-सूत्र, मानसिक स्थिरता एवं आत्म-अन्वेषण की ओर अग्रसर होना चाहता हो।
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वे लोग जिनकी कुंडली में गुरु ग्रह प्रभावित या कमजोर स्थिति में हो, विशेष रूप से अध्यात्म-मार्ग, शिक्षा-मार्ग या मनोबल-उन्नति में असमर्थ महसूस कर रहे हों।
जिनका मन लगातार “मैं कौन हूँ?”, “मेरा मूल स्वरूप क्या है?” जैसे प्रश्नों से ग्रस्त हो - और उन्हें आंतरिक शांति या आत्म-ज्ञान की तलाश हो रही हो।
साधक-मार्ग पर चलने वाले, ध्यान-योग कर रहे, आत्म-चिंतन में रुचि रखने वाले लोग - उनके लिए यह पाठ विशेष रूप से उपयुक्त है।
सामान्य रूप से - जिनका जीवन-मार्ग दिशा-हीन है, मानसिक अशांति है, उद्देश्य-अनुभव की कमी है - उन्हें निर्वाण षट्कम् स्तोत्र के नियमित पाठ से लाभ हो सकता है।
स्तोत्र की प्रारंभिक पंक्तियाँ:
“मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् … न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायु:”
अर्थात् - मैं न मन हूँ, न बुद्धि, न अहंकार, न चित्त; न आकाश, न धरती, न अग्नि, न वायु।
अगली पंक्तियाँ बताती हैं - मैं न क्षुद्र जीवन-प्राण हूँ, न पंचवायुः, न सप्तधातुः, न पञ्चकोशः; न वाणी, न हाथ-पैर - मैं “चिदानन्द रूपः” हूँ।
आगे का छंद कहता है - न मुझे द्वेष-राग, न लोभ-मोह, न मद-मात्सर्य की वृत्ति; न धर्म, न अर्थ, न काम, न मोक्ष - मैं उन सभी से परे हूँ।
इसका मूल भाव है - ‘मैं’ जो भाव है, वह किसी रूप-रूप में नहीं बँधा है; वह “शुद्ध चेतना, आनंद स्वरूप, शिव” है। इसमें बन्धन-मुक्ति, आत्म-साक्षात्कार और वैराग्य का संदेश है।
इस तरह यह पाठ हमें बताता है कि बाह्य-संसार, इन्द्रिय-बद्धता, नाम-रूप व कलुषों से ऊपर उठकर हमें अपनी असली पहचान-स्वरूप को जानना है।
यदि आप अपने जीवन में मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान, उद्देश्य-अनुभव, मोक्ष-भावना चाहते हैं - और विशेष रूप से यदि आपके ज्योतिष दृष्टि / (horoscope astrology) में गुरु ग्रह प्रभावित हो - तो “निर्वाण षट्कम्” का नियमित पाठ एक समुचित उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव और समझ-साथ इसे पढ़ें, अर्थ को अनुभव करें, मन को अपने भीतर की चेतना-ओर लगाएँ - और उसके पश्चात् अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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