निव्राण दशकम् मोक्ष और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए आदर्श स्तोत्र है। यदि आपकी कुंडली में गुरु (Jupiter) या शनि (Saturn) ग्रह कमजोर हैं और जीवन में मानसिक अस्थिरता या तनाव महसूस हो रहा है - तो इस स्तोत्रीय पाठ का नियमित अभ्यास अत्यंत लाभकारी माना गया है।
Nirvana Dashakam is an ideal hymn for liberation and spiritual wisdom. If Jupiter or Saturn is weak in your horoscope and you face mental instability or stress, reciting this dashakam brings positive effects.
यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया माना जाता है। कुल दस श्लोक होने के कारण इसे “दशकम्” कहा गया है। यह ग्रंथ भक्तिभाव से अधिक आत्म-बोध और ज्ञान की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक है।
निर्वाण दशकम् स्तोत्र मुख्य रूप से किसी देवता-देवी के नाम-रूप में नहीं बल्कि आत्म-स्वरूप, ब्रह्म-तत्त्व, मोक्ष-सत्य के अभिव्यक्ति रूप में है।
इसमें यह बताया गया है कि हम “मैं वही हूँ”- भाव से अपने वास्तविक स्वरूप से बंधन-मुक्त हो सकते हैं, संसारिक बंधन, नाम-रूप, कर्म-बंधन को “नेति-नेति” („यह नहीं, वह नहीं“) प्रकार से पार कर सकते हैं।
जब व्यक्ति जीवन-मार्ग में मानसिक अस्थिरता, अज्ञातता, उद्देश्य-हीनता अनुभव कर रहा हो - और विशेष रूप से यदि कुंडली में गुरु या शनि ग्रह कमजोर हों तब निर्वाण दशकम् स्तोत्र का पाठ मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान, बंधन-मुक्ति लाने में सहायक माना गया है।
गुरु के कमजोर होने पर व्यक्ति में ज्ञान और विवेक की कमी दिखती है, जबकि शनि की दुर्बलता से जीवन में निरंतरता और स्थिरता घटती है। ऐसे समय में यह स्तोत्र मन को संतुलन और आत्म-चिंतन की शक्ति देता है।
वास्तु और ज्योतिष - दोनों ही दृष्टियों से - यह स्तोत्र “मैं कौन हूँ?” और “मेरा उद्देश्य क्या है?” जैसे प्रश्नों का उत्तर खोजने में मदद करता है।
वे लोग जिनकी कुंडली में गुरु ग्रह या शनि ग्रह प्रभावित/कमज़ोर हों, और जिनका जीवन-मार्ग मानसिक अस्थिरता, लक्ष्य-अनिश्चितता, आध्यात्मिक कमी की स्थिति में हो।
जो व्यक्ति अध्यात्म-मार्ग, आत्म-चिंतन, मोक्ष-अनुभव की ओर अग्रसर होना चाहते हों, लेकिन बाह्य-बाधाओं, मानसिक उलझनों या उद्देश्य-हीनता से ग्रस्त हों।
विद्यार्थी, अध्येता, साधक - जिन्हें अध्ययन-ध्यान में समस्या हो रही हो, या जिनका मन लगातार विचार-उलझनों में आ रहा हो - उनके लिए यह पाठ लाभ-प्रद हो सकता है।
सामान्य रूप से- जिनका जीवन-मार्ग दिशा-हीन प्रतीत हो रहा हो, जिन्हें आत्म-साक्षात्कार या आन्तरिक स्थिरता की आवश्यकता हो - अधिक या कम उन सभी को यह पाठ अपनाना चाहिए।
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स्तोत्र की आरंभिक पंक्ति कहती है - “न भूमिर्न तोयं न तेजो न वायुः… तदेकोऽवशिष्टः शिवः केवलोऽहम्”
अर्थात् “मैं न पृथ्वी हूँ, न जल, न अग्नि, न वायु; केवल वही एक सत्य शेष रहता है - शिवः केवलोऽहम्।”
दूसरे श्लोक में कहा गया है - “न वर्णा न वर्णाश्रमाचारधर्मा… अनात्माश्रयोऽहं ममाध्यासहीनात्…”
अर्थात् “मैं न वर्ण या धर्म से बंधा हूँ, न किसी कर्म या सामाजिक पहचान से; मैं तो बंधन-रहित आत्मा हूँ।”
इन पंक्तियों के माध्यम से आदि शंकराचार्य हमें यह समझाते हैं कि हम शरीर, नाम या रूप नहीं - बल्कि चैतन्य, आनंद और निराकार चेतना हैं।
यह केवल पाठ नहीं, बल्कि विवेक और आत्म-जागृति की साधना है। जब व्यक्ति अपने अस्तित्व को बाहरी स्वरूप से ऊपर उठाकर आत्म-सत्य को पहचानता है, तब उसके भीतर सच्ची शांति और मोक्ष का भाव जागृत होता है।
यदि आप अपने जीवन में मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान, उद्देश्य-अनुभव, मोक्ष-भावना या आन्तरिक स्थिरता चाहते हैं - और विशेष रूप से यदि आपके ज्योतिष (horoscope astrology) में गुरु या शनि ग्रह प्रभावित हों - तो “निर्वाण दशकम्” का नियमित पाठ एक सार्थक उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव, श्रद्धा और समझ के साथ इसे पढ़ें, अर्थ को अनुभव करें, मन को अपने भीतर के स्वरूप तक ले जाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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