ललिता पञ्चरत्नम् (ललिता पञ्चक) स्तोत्र देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी के पाँच रत्न-स्तोत्रों (अष्टक नहीं, पाँच स्तोत्र + फलसूत्र) का संग्रह है।
यदि आपकी कुंडली में चंद्र (Moon) या शनि (Saturn) ग्रह कमजोर हैं और जीवन में मानसिक शांति, देवी की कृपा, भय-मुक्ति की आवश्यकता हो रही है, तो इस स्तोत्र का पाठ लाभकारी माना जाता है।
Lalita Pancharatnam is a collection of five gems of hymns dedicated to Goddess Lalita. If the Moon or Saturn is weak in your horoscope and you need mental peace or divine grace, reciting this stotram brings benefits. Download Free PDF
यह स्तोत्र महान संत-आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। कुछ स्रोत बताते हैं कि यह “ललिता पञ्चरत्नम्” नाम से प्रसिद्ध है और पाँच स्तोत्रों में देवी की स्तुति की गई है।
मुख्य रूप से यह स्तोत्र देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित है - जिन्हें शक्ति-स्वरूपा, जगदम्बा और जगत्-जननी माना गया है।
देवी ललिता को “भवानी” नाम से भी संबोधित किया गया है, इसलिए यह स्तोत्र शक्ति-भक्ति (देवी-भक्ति) का एक सुंदर रूप है।
यदि किसी की कुंडली में चंद्र या शनि ग्रह कमजोर हों - अर्थात् मनोबल, मानसिक शांति, भाव-चिन्ता, जीवन-स्थितियों की स्थिरता में समस्या हो रही हो - तो ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र मन की अशांति दूर करने, देवी-कृपा प्राप्ति, जीवन-मार्ग में सुरक्षा-भाव उत्पन्न करने में सहायक माना गया है।
चूंकि देवी ललिता शक्ति-स्वरूपा हैं और जगत्-सृष्टि-विनाश-स्थिति की कारण भी मानी गई हैं - इसलिए उनका स्मरण “भय-मुक्ति”, “मानसिक संतुलन”, “भाव-उन्नति” जैसे लाभ देता है।
वास्तु-ज्योतिष दृष्टि से - जब व्यक्ति को जीवन में देवी-कृपा, संरक्षण, भाव-बल, सामाजिक-संपर्क, मानसिक स्थिरता आदि की कमी हो रही हो - ऐसे में ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र का नियमित पाठ उपाय के रूप में उपयोगी हो सकता है।
वे लोग जिनकी कुंडली में चंद्र या शनि ग्रह प्रभावित/कमजोर स्थिति में हों, और जिनका जीवन-मार्ग मानसिक अशांति, भय, सुरक्षा-भाव की कमी, देवी-भक्ति का अभाव से प्रभावित हो रहा हो।
जिनका मन काफी व्यथित, चिंताग्रस्त, संवेदनशील हो - तथा जिन्होंने भावना-सामंजस्य, आन्तरिक दृढ़ता, सकारात्मक-शक्ति की आवश्यकता महसूस की हो।
भक्त जो देवी ललिता की उपासना करना चाहते हों, या शक्ति-भक्ति की ओर अग्रसर हों, उन्हें ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र का नियमित पाठ लाभदायी होगा।
सामान्य रूप से - जिनका जीवन-मार्ग स्थिर नहीं बना हो, मन की शांति नहीं मिल रही हो, देवी-कृपा-अनुभव चाहते हों - उन्हें ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र अपनाना चाहिए।
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“पञ्चरत्नम्” अर्थात् पाँच रत्न-स्तोत्र - इस नाम से ही यह बताया गया है कि इन पाँच स्तोत्रों में देवी ललिता की दिव्यता, कृपा-भाव, लीला-गुण संक्षिप्त रूप से समाहित हैं।
उदाहरण के लिए प्रथम स्तोत्र में कहा गया है:
“प्रातः स्मरामि ललितावदनारविन्दं …”
अर्थात्- “मैं प्रातःकाल उनकी उस ललितावदना (देवी के मुखकमल) का स्मरण करता हूँ…”
यह संकेत है-भक्ति की शुरुआत स्मरण से होती है।
दूसरे-तीसरे स्तोत्रों में देवी के चरण, उनके दंड-ध्वज-चिन्ह, भक्त-प्राप्ति-क्षमता आदि का वर्णन है - जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह संसार-सागर को पार कराने वाली, भक्त-आश्रय-देने वाली हैं।
अंत में फल-सूत्र में कहा गया है:
“यः स्तोत्र-पञ्चकमिदं ललिताम्बिकायाः … तस्मै ददाति ललिता झटिति प्रसन्ना विद्यां श्रियं विमलसौख्यं अनन्तकीर्तिम्”
अर्थात्- जो इन पाँच स्तोत्रों का श्रद्धा-पूर्वक पाठ करता है-उसको देवी झट-प्रसन्न होकर विद्या-धन-सौख्य-यश आदि अनन्त-कीर्ति प्रदान करती हैं।
इस तरह ललिता पञ्चरत्नम् स्तोत्र हमें यह संदेश देता है-कि भक्ति-स्मरण + समर्पण + नियमितता से देवी-कृपा सहज रूप से मिल सकती है, जो जीवन-मार्ग में स्थिरता, शक्ति एवं आत्म-विश्वास ला सकती है।
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यदि आप अपने जीवन में मानसिक शांति, देवी-कृपा, सुरक्षा-भाव, भाव-संतुलन एवं आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं - और यदि आपके ज्योतिषीय (horoscope astrology) दृष्टि में चंद्र-शनि ग्रह प्रभावित हों - तो “ललिता पञ्चरत्नम्” का नियमित पाठ एक सार्थक उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव एवं श्रद्धा के साथ इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को देवी ललिता की ओर लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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