लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्रम् - यह आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाने वाला एक दिव्य स्तोत्र है, जिसमें भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी की रक्षा-कृपा का आह्वान किया गया है। यदि आपकी कुंडली में मंगल (Mars) या शनि (Saturn) ग्रह कमजोर हैं और जीवन में भय, बाधा या संकट की स्थिति बनी हुई है - तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।
Lakshmi Narasimha Karavalamba Stotram is a protective hymn of Lord Narasimha and Goddess Lakshmi. If Mars or Saturn is weak in your horoscope and you face fear, obstacles, or danger, reciting this stotram regularly brings auspicious results.
यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। स्तोत्र के अंत में यह उल्लेख मिलता है: “इति श्रीलक्ष्मीनृसिंह करावलम्ब स्तोत्रम् … श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितम्।”
यह मुख्य रूप से भगवान नरसिंह को समर्पित है - जो विष्णु के क्रूर रूप में, भक्त की रक्षा हेतु अवतरित हुए थे।
साथ ही इसमें माता लक्ष्मी का समावेश है - देवता विष्णु की पत्नी तथा ऐश्वर्य-सौभाग्य की देवी। इसलिए यह स्तोत्र लक्ष्मी-नरसिंह-सहायता-रक्षा का प्रतीक है।
जब आपकी कुंडली में मंगल या शनि कमजोर हों - जैसे ऊर्जा या साहस की कमी, भय-भाव, संकट की स्थितियाँ, बाधाएँ - तो लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्र भय-मुक्ति, बाधा-उन्मूलन, आंतरिक सुरक्षा-भाव को बढ़ाने में सहायक माना गया है।
वास्तु-ज्योतिष में यह उपाय कहता है कि जब जीवन-मार्ग में रुकावटें हों, संकट या भय बना हुआ हो - तब लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्र-पाठ से विश्वास-वृद्धि, रक्षा-भाव, सकारात्मक ऊर्जा आ सकती है।
लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को यह अनुभूति हो सकती है कि “मैं अकेला नहीं हूँ, मेरी रक्षा होगी” - जो मनोबल को बढ़ाती है और संकट-भाव को कम करती है।
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वे लोग जिनकी कुंडली में मंगल या शनि ग्रह प्रभावित/कमज़ोर स्थिति में हों, और जीवन में भय, असमर्थता, बाधा या संकट-भाव लगातार महसूस हो रहा हो।
जिन्हें लगता हो कि जीवन-मार्ग में स्थिरता नहीं है - जैसे अचानक रुकावटें, स्वास्थ्य-दिक्कतें, आर्थिक चुनौतियाँ, नौकरी-व्यवसाय में संकट।
भक्त जो भगवान नरसिंह एवं माता लक्ष्मी की रक्षा-भक्ति करना चाहते हों, या जिन्होंने देवी-देवताओं से रक्षा एवं कृपा की प्रार्थना करनी हो।
सामान्य रूप से - जिनका मन आशंका-ग्रस्त है, जीवन-स्थितियाँ अस्थिर हैं, उन्हें यह स्तोत्र पाठ के रूप में अपनाना चाहिए।
“करावलम्ब” का अर्थ है - हाथ का सहारा या हाथ पकड़ने वाला। इस स्तोत्र में भक्त कहता है: “हे लक्ष्मी-नरसिंह! मेरा हाथ पकड़ो, मेरी रक्षा करो।” जैसे प्रथम स्तोत्र में:
“श्रीमत्पयोनिधिनिकेतनचक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिराजितपुण्यमूर्ते। योगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपोत लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्।”
आगे के छंदों में संसार की भयावहता, दुःख-सागर, राग-विषय, संहार-प्रवृत्ति आदि का वर्णन है - जैसे “संसारसागरविशालकरालकाल-नक्रग्रहग्रसित…” आदि।
इस प्रकार यह स्तोत्र साधारण पाठ मात्र नहीं, बल्कि भक्त-भाव से रक्षा-प्रार्थना का माध्यम है - जहाँ भक्त स्वयं को भगवान के चरणों में समर्पित करके “हाथ पकड़ने” का भाव रखता है।
लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्र पाठ से यह संदेश मिलता है कि भक्त-जीवन में जब भय, संकुचितता, संदेह हों, तब देव-सहायता का मार्ग खुलता है - और भगवान नरसिंह-लक्ष्मी की कृपा-ऋतु सक्रिय होती है।
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यदि आप अपने जीवन में भय-मुक्ति, बाधा-उन्मूलन, आंतरिक सुरक्षा-भाव, सकारात्मक उन्नति चाहते हैं - और यदि आपके ज्योतिष (horoscope astrology) में मंगल-शनि ग्रह प्रभावित हों - तो “लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्रम्” का नियमित पाठ एक सुयोग्य उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव से इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को भगवान नरसिंह एवं माता लक्ष्मी की ओर लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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