जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है और भगवान जगन्नाथ की महिमा का दिव्य स्तोत्र है। यदि आपकी कुंडली में गुरु (Jupiter) या शुक्र (Venus) कमजोर हैं और जीवन में सुख-समृद्धि, भक्ति या आध्यात्मिक उन्नति की कमी हो रही है, तो इसके नियमित पाठ से विशेष लाभ एवं आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं।
Jagannathashtakam is a divine hymn praising Lord Jagannath. If Jupiter or Venus is weak in your horoscope and you face lack of happiness, prosperity, or devotion, reciting this stotram is highly beneficial. Download Free PDF
जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी, जब वे पुरी (ओड़िशा) में स्थित भगवान जगन्नाथ के दर्शन हेतु आए थे। ऐसे स्रोत भी इंगित करते हैं कि यह आठ छंदों (अष्टकम्) में रचा गया है, जिसमें भगवान जगन्नाथ के गुण, स्वरूप, कृपा-रूप आदि का वर्णन है।
मुख्य रूप से यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ को समर्पित है - जिनका नाम “जगन्नाथ” अर्थात् “जगत के स्वामी” भी माना गया है।
स्तोत्र में यह भी स्पष्ट है कि प्रार्थक भगवान को “नयनपथगामी” अर्थात् जिसकी दृष्टि मेरी दिशा बन जाए, उस स्वरूप में स्मरण करता है।
इस तरह यह भक्ति-स्मरण, भगवान जगन्नाथ की कृपा-प्रार्थना एवं समर्पण के माध्यम से है
यदि आपकी कुंडली में गुरु (बृहस्पति) या शुक्र (वेनस) ग्रह कमजोर स्थिति में हों, तो आपको सुख-समृद्धि, अध्ययन-विस्तार, भक्ति-भाव, आध्यात्मिक उन्नति आदि में कमी आ सकती है। तब जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र का नियमित पाठ इन क्षैतिजों में लाभदायी माना जाता है।
वास्तु-ज्योतिष की दृष्टि से - जब जीवन-मार्ग में स्थिरता न हो, भक्ति-भाव कम हो, मानसिक असमर्थता, सफलता-विलंब अथवा सुख-समृद्धि में कमी हो रही हो - तब जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र-पाठ, उपाय के रूप में उपयोगी हो सकते हैं।
इस तरह यह स्तोत्र आपको भक्ति-मार्ग, दृढ़ विश्वास, जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायता कर सकता है।
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वे लोग जिनकी कुंडली में गुरु या शुक्र ग्रह कमजोर-अवस्थिति में हों, और उन्हें सुख-समृद्धि, भक्ति-भाव, अध्ययन- सफलता, मानसिक शांति आदि में कठिनाई हो रही हो।
जिनका जीवन-मार्ग स्थिर नहीं है - जैसे रोजगार-संकट, शैक्षणिक असमर्थता, भक्ति-भाव का अभाव, आध्यात्मिक उन्नति का अभाव।
भक्त जो भगवान जगन्नाथ की उपासना करना चाहते हों, या जिनमें भक्ति-भाव को बढ़ाने की आवश्यकता हो।
सामान्य रूप से - जिनका मन अशांत है, जीवन में दिशा-हीनता है, उन्हें इस स्तोत्र के नियमित पाठ से आंतरिक शांति एवं सकारात्मक बदलाव प्राप्त हो सकता है।
स्तोत्र की शुरुआत-छंद में जहाँ कहा गया है:
“कदाचित् कालिन्दी-तटविपिन-सङ्गीततरलो… जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे”
इसका भाव-बोध है कि कभी यमुना-तट के वृन्दावन-वृन्द में भगवान की लीला-संध्या में ब्राह्मण-संगीत-राग उपस्थित थे, उस स्वरूप को मैं अपने नयन-मार्ग में देखें।
बाद में स्तोत्र में यह कहा गया है कि मैं ना राज्य-भोग की कामना करता हूँ, ना धन-सम्पत्ति का लालच - बल्कि उस दिव्य-स्वरूप को चाहूँ जो पाप-बंधनों से ऊपर है।
अंत में स्तोत्र का फल-सूत्र है: “जगन्नाथाष्टकं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः, सर्वपाप-विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति।” यानी, इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने वाला पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णु-लोक को प्राप्त होता है।
इस प्रकार जगन्नाथाष्टकम् स्तोत्र भक्ति, त्याग, श्रद्धा और आत्म-समर्पण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा है।
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यदि आप अपने जीवन में सुख-समृद्धि, भक्ति-भाव, अध्ययन-सफलता, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं - और विशेष रूप से आपके ज्योतिषीय दृष्टि (horoscope astrology) में गुरु-शुक्र ग्रह प्रभावित हों - तो “जगन्नाथाष्टकम्” का नियमित पाठ एक महत्वपूर्ण उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव से इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को भगवान जगन्नाथ की ओर लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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