गोविन्दाष्टकम् स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र भगवान गोविन्द (जो कि भगवान विष्णु/कृष्ण के रूप में पूजे जाते हैं) की महिमा का स्तुति-संग्रह है। यदि आपकी कुंडली में गुरु (Jupiter) या शनि (Saturn) कमजोर हैं और जीवन में सफलता, संतान या सुख में कमी है - तो इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है।
Govindashtakam is a hymn praising the glory of Lord Vishnu. If Jupiter or Saturn is weak in your horoscope and you face lack of success, children, or happiness, reciting this stotram brings auspicious results.
यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह आठ पदों का अष्टकम् है।
यह स्तोत्र मुख्य रूप से भगवान गोविन्द को समर्पित है - जो भगवान विष्णु/कृष्ण के रूप हैं। स्तोत्र में गोविन्द के बहुरूप, लीला-स्वरूपों का वर्णन मिलता है - जैसे गोपाल, क्रीड़ालु कृष्ण-रूप आदि।
इसलिए यह न केवल भगवान के एक नाम का स्तुति-पाठ है, बल्कि उनके विविध गुणों-लीलों का स्मरण भी है।
यदि आपकी कुंडली में गुरु या शनि कमजोर हों, तो सफलता-मार्ग, संतान-कल्याण, सुख-समृद्धि आदि में रुकावटें आ सकती हैं। ऐसे समय में गोविन्दाष्टकम् स्तोत्र का पाठ भाग्य-प्रवर्द्धन, दीर्घकालीन सफलता, संतान-कल्याण या वांछित-फल की प्राप्ति के उपाय के रूप में देखा जा सकता है।
स्रोतों में यह कहा गया है कि गोविन्दाष्टकम् स्तोत्र का नियमित पाठ मन-शांति देता है, पापों का नाश करता है, आंतरिक आनंद व मोक्ष-प्राप्ति की दिशा में ले जाता है।
इसलिए वास्तु-ज्योतिष के प्रसंग में - यदि जीवन-मार्ग में स्थिरता-कमी हो, सफलता-उतार-चढ़ाव हो, संतान-प्राप्ति या कल्याण-कार्यों में अवरोध हो - तो गोविन्दाष्टकम् स्तोत्र के पाठ को उपाय के रूप में अपनाया जा सकता है।
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ऐसे लोग जिनकी कुंडली में गुरु ग्रह या शनि ग्रह कमजोर स्थिति में हों, और जिन्हें सफलता-प्राप्ति, संतान-कल्याण, सुख-समृद्धि आदि में कठिनाई हो रही हो।
जिनका जीवन-मार्ग ढीला हो रहा हो - सफलता-साधना में विलंब हो, कार्यों में बाधाएँ हों, संतान-संबंधी चिंता हो।
भक्त-मार्ग पर हो, भगवान गोविन्द/कृष्ण की भक्ति करना चाहते हों, और जीवन में आध्यात्मिक- सफलता के साथ सांसारिक-सफलता भी चाहते हों।
सामान्य रूप से- जो व्यक्ति जीवन-मार्ग में प्रगति-चाहत, मन-शांति-चाहत, कल्याण-चाहत रखता हो - उसके लिए यह स्तोत्र लाभ-दायी हो सकता है।
स्तोत्र की शुरुआत- “सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं परमाकाशं…” - यहाँ भगवान गोविन्द को सत्य, ज्ञान, अनन्त, नित्यमनकाश-स्वरूप बताया गया है।
आगे- “मायाकल्पितनानाकारमनाकारं भुवनाकारं…” - अर्थात् माया के द्वारा अनेक रूपों मे प्रकट होने वाले भगवान, जो संपूर्ण भुवन का आधार-स्वरूप हैं।
अंतिम स्तोत्र में यह कहा गया है कि जो इस अष्टक-पाठ को मन लगाकर करता है, वह अन्तःकरण में परम आनंद-स्वरूप गोविन्द को प्राप्त करता है।
इस प्रकार यह स्तोत्र केवल भक्ति-पाठ नहीं, बल्कि भगवान-के रूप-गुणों-लीलाओं का चिंतन-पाठ भी है, जो जीवन-मार्ग में आध्यात्मिक-सफलता के साथ सांसारिक-सफलता की ओर प्रेरित करता है।
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यदि आप अपने जीवन में सफलता-प्राप्ति, संतान-कल्याण, सुख-समृद्धि चाह रहे हैं - और यदि आपके ज्योतिषीय दृष्टि से गुरु या शनि ग्रह प्रभावित-कमजोर हों - तो “गोविन्दाष्टकम्” का नियमित पाठ एक सार्थक उपाय बन सकता है।
भक्ति-भाव से इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को गोविन्द की ओर लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन-मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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