भवानी अष्टकम् स्तोत्र देवी भवानी की शक्ति और करुणा का स्तुति- संग्रह है। यदि आपकी कुंडली में शनि (Saturn) या मंगल (Mars) कमजोर हैं और जीवन में भय, कष्ट या ऊर्जा की कमी है - तो इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ फल देता है।
Bhavani Ashtakam is a collection of hymns praising the power and compassion of Goddess Bhavani. If Saturn or Mars is weak in your horoscope, and you face fear, obstacles, or low energy, reciting this ashtakam brings auspicious results. Download Free PDF
यह स्तोत्र महान वैदिक ऋषि- आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह आठ छंदों वाला अष्टक है जिसमें देवी भवानी की स्तुति की गई है।
यह स्तोत्र मुख्य रूप से देवी भवानी को समर्पित है, जो देवी पार्वती का एक रूप हैं। इसमें “भवानी” नाम से यह भी संकेत मिलता है कि वह जगदम्बा, शक्ति- देवी की अभिव्यक्ति हैं - जो संकट, दुःख, भय से रक्षा करती हैं।
इसलिए इस स्तोत्र को शक्ति- भक्ति के अंतर्गत देखा जाता है, ना कि सिर्फ स्तुति-पाठ बल्कि शरणागति- प्रार्थना के रूप में।
भवानी अष्टकम् स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना गया है जिनकी कुंडली में शनि या मंगल ग्रह कमजोर स्थित हों - जिनका जीवन भय, कष्ट, ऊर्जा- कमी से प्रभावित हो। शक्ति- देवी की उपासना संकट, रोग, मानसिक तनाव, ऊर्जा- क्षय जैसी स्थितियों से निकालने में सहायक मानी जाती है - इसलिए भवानी अष्टकम् स्तोत्र उन्हें ऊर्जा, साहस और सुरक्षा का स्रोत प्रदान कर सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से - जब व्यक्ति को जीवन- मार्ग में रुकावटें आ रही हों, भय, शत्रुता, दुर्घटना- भाव, रोग- प्रवणता आदि- ऐसे कारक हों - तब इस प्रकार के स्तोत्र- पाठ को उपाय के रूप में देखा जाता है।
इसके नियमित पाठ से मन- चिंतन शुद्ध होता है, विश्वास बढ़ता है और जीवन में संकट के समय शरण एवं संरक्षण की अनुभूति होती है - अर्थात् यह आध्यात्मिक एवं मानसिक सुरक्षा का माध्यम बनती है।
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वे लोग जिनकी कुंडली में शनि या मंगल ग्रह प्रभावित/कमजोर स्थित में हों, और फिर जीवन में भय, मानसिक अशांति, ऊर्जा की कमी, शत्रु- भय, स्वास्थ्य संबंधी समस्या आदि हो रही हों।
वे भक्त जो शक्ति- उपासना अर्थात् देवी- भक्ति की ओर हैं - विशेष रूप से देवी भवानी की शरण में जाना चाहते हों।
जिनके जीवन- मार्ग में स्थिरता नहीं बनी हो - जैसे बदलती परिस्थितियाँ, भय- मुक्ति की चाह, रोग- प्रवणता । भवानी अष्टकम् स्तोत्र का नियमित पाठ उनकी सहायता कर सकता है।
विद्यार्थी, व्यवसायी, गृह - परिवार में सक्रिय लोग - जिनके अंदर ऊर्जा- ह्रास, स्थिरता- विचलन, मानसिक दबाव हो - वह इस स्तोत्र को अपने दैनिक अभ्यास में शामिल कर सकते हैं।
“भवानी” शब्द का अर्थ है - “जीवन देने वाली”, “भव (संसार) की धात्री”। इसलिए भवानी अष्टकम् स्तोत्र में देवी को एक सार्वभौमिक मातृत्व और रक्षा- शक्ति के रूप में देखा गया है।
स्तोत्र की शुरुआत में यह कहा गया है:
“न तातो न माता न बन्धुर्न दाता… गतिस्त्वं त्वमेका भवानि”
अर्थात्: “न पिता, न माता, न बंधु, न दाता… केवल तू ही मेरी गति है, तू ही मेरी शरण है, हे भवानी।”
आगे छंदों में भक्त अपनी अज्ञानता, दोष- कर्म, संसार- बंधन, भय- स्थिति आदि का वर्णन करता है और देवी भवानी को अपना एकमात्र आश्रय मानता है। इस प्रकार यह स्तोत्र भक्त- स्वीकार, शरणागति, देवी- सहारा की भाव- भूमि पर आधारित है - जहाँ शक्ति- देवी की कृपा द्वारा जीवन- पथ में स्थिरता और सुरक्षा प्राप्त होती है।
पाठ - के बाद यह भाव जाग्रत होता है कि “मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे पास रक्षा- शक्ति है, मैं शरण में हूँ” - जिससे भय- हताशा कम होती है, मनोबल बढ़ता है।
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यदि आप अपने जीवन में भय- मुक्ति, ऊर्जा- वृद्धि, मन- शांति और आध्यात्मिक सुरक्षा चाहते हैं - और ज्योतिषीय दृष्टि से शनि- मंगल आदि ग्रह प्रभावित हों - तो “भवानी अष्टकम्” का नियमित पाठ एक सार्थक उपाय बन सकता है।
भक्ति- भाव से इसे पढ़ें, अर्थ को समझें, मन को देवी भवानी की ओर लगाएँ - और उसके बाद फलस्वरूप अपने जीवन- मार्ग में सकारात्मक बदलाव की आशा रखें।
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