अर्धनारीश्वर अष्टकम् भगवान शिव और माँ पार्वती के संयुक्त स्वरूप का भव्य स्तोत्र है। यह श्लोक बताता है कि पुरुष और स्त्री, शिव और शक्ति — दोनों मिलकर सृष्टि की पूर्णता का प्रतीक हैं। ज्योतिष के अनुसार, यह स्तोत्र उन लोगों के लिए अत्यंत शुभ है जिनकी कुंडली में चंद्र, शुक्र या मंगल ग्रह कमजोर हैं, जिससे जीवन में असंतुलन, वैवाहिक मतभेद या भावनात्मक तनाव उत्पन्न होता है।
इस अष्टकम् का पाठ मन, शरीर और आत्मा में संतुलन स्थापित करता है। जब ग्रहों का असंतुलन व्यक्ति के जीवन में उथल-पुथल लाता है, तो यह स्तोत्र ग्रह दोष निवारण उपाय के रूप में कार्य करता है। यह मंगल दोष, शनि दोष, या राहु काल के प्रभावों को कम कर, दांपत्य जीवन में सामंजस्य और स्थिरता लाता है।
वास्तु शास्त्र और अंक ज्योतिष के अनुसार, अर्धनारीश्वर का पूजन घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह स्तोत्र घर के वातावरण को पवित्र बनाता है और नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को दूर करता है। जो लोग प्रेम विवाह योग या वैवाहिक सुख में बाधा का अनुभव कर रहे हैं, उन्हें इसका पाठ प्रतिदिन करना चाहिए।
यह श्लोक आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ भविष्यफल को भी शुभ दिशा में मोड़ता है। कुंडली मिलान, महादशा, और शनि साढ़ेसाती से संबंधित समस्याओं में भी यह अत्यंत प्रभावी माना गया है। इसके पाठ से व्यक्ति में आत्मविश्वास, सौम्यता और संतुलन बढ़ता है।
संक्षेप में, अर्धनारीश्वर अष्टकम् जीवन के दोनों पक्षों — शक्ति और शिव — के मिलन का प्रतीक है। यह न केवल वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थिरता लाता है बल्कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के दोषों को शांत कर व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और आत्मबल प्रदान करता है।